विश्व नदी दिवस : मां रूमाली देवी एजुकेशन एंड वेलफेयर सोसायटी तत्वाधान में मां गोमती सफाई अभियान का आयोजन
लखनऊ : मां रूमाली देवी एजुकेशन एंड वेलफेयर सोसायटी के तत्वाधान में मां गोमती की सफाई का अभियान चलाया गया इस अभियान के संयोजक संस्था के संयुक्त सचिव एवं सूरज फाउंडेशन ऑफ इंडिया के उपाध्यक्ष आदर्श राय ने किया ।
उपाध्यक्ष राय ने कहां की जिस तरीके से मां गंगा अविरल और निर्मल है उनकी धाराएं पवित्र हैं लेकिन उनकी सहायक नदिया गंदी होती चली जा रहे हैं इसके लिए किसी न किसी को इसकी सफाई का बीड़ा उठाना होगा इस सफाई अभियान के दौरान अपने कार्यकर्ता के साथ मां गोमती को स्वच्छ बनाने के लिए सभी लोगों ने इस सफाई अभियान का हिस्सा बने। इस स्वच्छता अभियान के दौरान संस्था के महासचिव रविकान्त राय ने कहा कि गंगे तव दर्शनात् मुक्तिः का उद्घोष करने वाली भारतीय संस्कृति में नदियों, सरोवरों, झीलों, तड़ागों के प्रति बड़ी पुण्य आस्था थी सरिताएं ही क्या, भारतीय संस्कृति तो प्रकृति की सभी शक्तियों में दैवी स्वरूप का दर्शन करती थी । लेकिन समय के अनुसार प्रयुक्त हो रहे जल पर जन भार बढ़ता गया, औद्योगिक बस्तियां उभरने लगीं और निर्बाध रूप से नदियों में औद्योगिक उच्छिष्ट और कूड़ा-करकट तथा मल जल प्रवाहित किए जाने लगे, फलतः पुण्यदायिनी नदियों ने अपनी पवित्रता खो दी, मानवीय कृत्यों ने उनकी पवित्रता अक्षुण्ण नहीं रहने दी। आज पुण्य तोया. पुण्य सलिला गंगा पुण्य तोया नहीं रही, अपितु वह नगरीय बस्तियों का कचरा होने वाली मात्र एक नदी रह गयी है। गंगा पर प्रदूषण का हमला मैदानी भाग में उतरते ही हरिद्वार से शुरू हो जाता है और फिर सागर में मिलने तक इसके 2525 किमी. लंबे बहाव मार्ग के दोनों ओर बसे शहरों का मल, कूड़ा-कचरा इसे अपने में समेटना पड़ता है। शहरी मल के अतिरिक्त उद्योगों से निकले व्यर्थ पदार्थ, रसायन, अधजली लाशें, राख आदि गंगा में मिलते रहते हैं जो इसे दूषित करते हैं। औद्योगिक अपशिष्ट और मल ऐसे 29 शहरों से आकर गंगा में गिरता है, जिनकी आबादी 1 लाख से ऊपर है। ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि ऐसे शहरों में से केवल 15 शहरों में ही स्वच्छ मल निपटान की व्यवस्था है 23 ऐसे शहर, जिनकी आबादी 55 हजार से ऊपर है, अपनी मैल गंगा को सौंपते हैं। इसके अतिरिक्त 48 और छोटे-बड़े शहर अपना उच्छिष्ट गंगा में प्रवाहित करते हैं। ये सभी शहर उ.प्र. बिहार और पश्चिम बंगाल में गंगा के किनारे बसे हुए हैं। यह देखा जाये इसे दूषित करने में उ.प्र. का स्थान सर्वोपरि है। उ.प्र. के प्रमुख औद्योगिक नगर कानपुर के चमड़े कपड़े और अन्य उद्योगों के अपशिष्टों के प्रभाव तले वहां गंगा का जल काला हो जाता है। गंगोत्री से लेकर वाराणसी तक गंगा नदी में 1611 नदियां और नाले गिरते हैं तथा केवल वाराणसी के विभिन्न घाटों पर लगभग 30,000 लाशों का दाह संस्कार होता है। इस कृत्य से लगभग डेढ़ लाख टन राख गंगा में प्रतिवर्ष प्रवाहित होती है।इतना ही नहीं, अकेले वाराणसी में ही लगभग 20 करोड़ गैलन बिना साफ की हुई मल की गंद रोज गंगा में मिलती रहती है। टनों राख के अतिरिक्त अधजली लाशें, जानवरों के ढांचे भी गंगा की धारा में गिरते ही रहते हैं।
गंगा घाटी में बसे कुल 100 शहरों की गंदगी का 82 प्रतिशत ऊपर बताये गये 1 लाख से अधिक आबादी वाले 29 शहरों से आता है और इनमें से 28 शहर कुल 100 शहरों के मल संस्थानों से आने वाली गंदगी का 89 प्रतिशत हिस्सा गंगा को सौंपते हैं। कुल मिलाकर जो तस्वीर उभरती है, वह बड़ी चिंताजनक है और गंगा ही क्या, आज भारत की सारी नदियां दूषित हो चुकी हैं, चाहे वह गंगा-यमुना हो या कि कृष्णा-कावेरी, प्रदूषण की मार से कोई अछूती नहीं समन्वय अंतर क्षेत्रीय व्यापक योजना और प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए एक नदी बेसिन दृष्टिकोण अपनाकर प्रदूषण और गंगा नदी के संरक्षण के प्रभावी कमी सुनिश्चित करना तथा पानी की गुणवत्ता और पर्यावरण की दृष्टि से टिकाउ विकास सुनिश्चित करने के उद्देश्य से गंगा नदी में न्यूनतम पारिस्थितिक प्रवाह बनाए रखना है। इस अभियान के दौरान संस्था के अध्यक्ष डॉ डी के राय, संस्था के सदस्य एवं पदाधिकारी तथा सूरज फाउंडेशन ऑफ इंडिया के संगठन मंत्री अमितेश पटेल उपस्थित रहे।
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