प्राचीन ग्रंथों में भी अपार वानस्पतिक ज्ञान का भण्डार :मुख्य सचिव
लखनऊ। मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने सीएसआरआई-एनबीआरआई द्वारा आयोजित ‘वन वीक वन लैब’ कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में प्रतिभाग किया। उन्होंने पादप विविधता, वर्गिकी एवं पाद्पालय पर आधारित प्रदर्शनी का उद्घाटन किया।
अपने संबोधन में मुख्य सचिव ने कहा कि पारिस्थितिकी तंत्रों के बढ़ते क्षरण को कम करने के लिए हमे ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने होंगे और इसके लिए लोगों को जागरुक भी करना होगा। वैज्ञानिकों को अपने कार्य पर गर्व होना चाहिए। यह हमारे वैज्ञानिकों का ही कार्य है, जिन्होंने देश को न सिर्फ कोरोना महामारी से बचाने व उबरने में सहायता प्रदान की। दुनिया के अनेक देशों को मदद के रूप में वैक्सीन भेजी गई।
उन्होंने कहा की जिस तरह से विभिन्न पादप प्रजातियां तेजी से विलुप्त हो रही हैं, ऐसे में इनके अभिलेखन में वर्गिकी अध्ययनों एवं पादपालय (हरबेरियम) का बहुत महत्व है। उन्होंने इस अवसर पर जारी ‘उत्तर प्रदेश के ई-फ्लोरा’ तथा ‘उत्तर प्रदेश के पादप संसाधन’ पुस्तक को एक बड़ी उपलब्धि बताया।
उन्होंने वैज्ञानिकों से आग्रह किया कि किसानों की आय बढ़ाने के दृष्टिगत शोध कार्य करें, ताकि प्रदेश एवं देश को आत्मनिर्भर बनाने एवं उन्नति में योगदान हो सके। प्रदेश में औषधीय या अन्य रूप से महत्वपूर्ण पौधों की खेती से किसानों की आय बढ़ाने के लिये भी कार्य करना चाहिये। पादप वर्गिकी अध्ययनों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी अपार वानस्पतिक ज्ञान का भण्डार उपलब्ध है, वैज्ञानिकों को इस ज्ञान को भी सामने लाने के प्रयास करने चाहिये।
विशिष्ट अतिथि डॉ. पी वी साने ने जैव विविधता को संपूर्णता में समझने पर बल दिया, जिसमें पौधों का आपस में संबंध, पौधों एवं सूक्ष्म जीवों, पौधों एवं कीटों के आपसी संबंध भी शामिल हैं।
इस दौरान संस्थान के निदेशक डॉ. ए0के0शासनी ने बताया कि आज ‘पादप विविधता, वर्गिकी एवं पाद्पालय’ विषय सम्बंधित थीम पर आयोजित कार्यक्रमों में प्रमुख रूप से भारत के राज्यों के राजकीय फूलों की सचित्र प्रदर्शनी, पादप विविधता में वर्गीकरण की द्विनाम पद्धति के जनक कैरोलस लिनियस द्वारा वर्गीकृत किये गए पौधों को प्रदर्शित करती हुई लिनियन ट्रेल, पाद्पालय में नमूनों के संरक्षण की तकनीक, पादप विविधता विभाग की उपलब्धियों, कार्यों एवं प्रकाशनों की प्रदर्शनी लगायी गयी है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान भारत में पौधों पर बहुआयामी शोध करने वाला ऐसा एक संस्थान है जो वनस्पति विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों पर संपूर्णता से कार्य कर रहा है।
विशिष्ट अतिथि डॉ. एम संजप्पा ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि सभी वैज्ञानिक संस्थानों के लिए आवश्यक है कि वह अपनी उपलब्धियों एवं कार्यों को आम जनता तक पहुंचायें। तमाम जैविक संसाधन बहुत तेजी से विलुप्त हो रहे हैं जिनका संरक्षण बहुत आवश्यक है और इस कार्य के लिए इन संसाधनों का अभिलेखिकरण बहुत आवश्यक है। इस कार्य के लिए आवश्यक वर्गिकी विशेषज्ञ देश में बहुत तेजी से कम हो रहे हैं और इस क्षेत्र को बढ़ावा देने की नितांत आवश्यकता है
इस अवसर पर गणमान्य अतिथियों ने ‘उत्तर प्रदेश के पौध संसाधनों पर’ संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा लिखी गयी पुस्तक का भी विमोचन किया। इसके साथ-साथ उत्तर प्रदेश के ई-फ्लोरा एवं एनबीआरआई के पाद्पालय की विवरणिका को भी जारी किया।
इस अवसर पर आयोजित प्रदर्शनी में भारत के सभी राज्यों के राजकीय पुष्पों की सचित्र जानकारी प्रदान करता हुआ एक फोटो प्वाइंट बनाया गया है, जहां पर लोग सेल्फी लेने में काफी रुचि प्रदर्शित कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त वनस्पति विज्ञान में द्विनाम पद्धति एवं वर्गीकरण एवं के पितामह कहे जाने वाले कैरोलस लिनियस् के विषय में जानकारी प्रदान की गई है। साथ ही कुछ ऐसे पौधों का भी प्रदर्शन किया गया है, जिनका नामकरण स्वयं लिनियस् द्वारा किया गया था। विभिन्न पौधों के नमूनों को पादपालय में संरक्षित करने की तकनीक के प्रदर्शन के साथ ही पादप विविधता, वर्गिकी एवं पादपालय विभाग की उपलब्धियों, कार्यों एवं प्रकाशनों का भी प्रदर्शन किया गया है।
इस अवसर पर भारतीय वानस्पतिक सर्वेक्षण, कोलकाता के पूर्व निदेशक डॉ. एम् संजप्पा, सीएसआईआर -एनबीआरआई, लखनऊ के पूर्व निदेशक डॉ. पी वी साने एवं सीएसआईआर-खनिज एवं सामग्री अनुसंधान संस्थान, भुवनेश्वर के निदेशक डॉ. रामानुज नारायण विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित थे।
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