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श्रीलंका आपातकाल के दौर में गुजर रहा, महगाई, चिकित्सा और विशेषज्ञों...

नई दिल्ली :- मीडिया रिपोर्ट के अनुसार -अत्यंत गहरा चुकी आर्थिक मुसीबत के कारण श्रीलंका में भड़के जनाक्रोश के सामने राष्ट्रपति गोटबया राजपक्षे की सरकार लाचार नजर आ रही है। गुजरे महीनों में आर्थिक संकट से राहत पाने के लिए श्रीलंका सरकार ने जो भी हाथ-पांव मारे, वे नाकाम साबित हुए हैं। खाने-पीने की चीजों के भी लाले पड़ने की वजह से पहले खबर आई कि बड़ी संख्या में लोग श्रीलंका से समुद्र के रास्ते भाग कर भारत के तमिलनाडु राज्य में जा रहे हैं। इस बीच देश भर में सड़कों पर विरोध जताए जाने की खबरें भी आती रही हैं। गुरुवार को संकेत मिला कि अब हालात बेकाबू हो रहे हैं।

 

श्रीलंका  पिछले कुछ समय से गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। यहां का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खत्म हो चुका है। जरूरी चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं।एक बार फिर बतादेकि,भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका की हालत इन दिनों खराब है। यह देश बीते कुछ हफ्तों से गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। खबर आ रही है कि श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार  लगभग खत्म हो चुका है और इसी के साथ कर्ज के बोझ से तले इस देश के दिवालिया  घोषित होने का खतरा भी पैदा हो गया है। 

 

श्रीलंका की करेंसी डॉलर की  तुलना में करीब आधी रह गई है। जरूरी चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। ब्रेड, दूध, अंडा, चावल, डीजल और पेट्रोल, मिर्च जैसे तमाम चीजों के दाम कई गुना बढ़ गए हैं। ईंधन की किल्लत की वजह से बसें बंद कर दी गई हैं। गैस नहीं मिल रही, इसलिए लोग खाना भी नहीं बना पा रहे।

 

श्रीलंका में महंगाई की दर 17 प्रतिशत से भी अधिक हो गई है। आइए जानते हैं, 09 ऐसे सामानों के रेट, जो आसमान छू रहे हैं...

 

●नंबर सामान रेट.......

 

1 चीनी 290 रु./ किलो

2 मिर्च 710 रु./किलो

3 चावल 500 रु./किलो

4 आलू 200 रु./किलो

5 दूध पाउडर (400 ग्राम) 790 रु.

6 उबला अंडा 515 रु.

7 दूध 263 रु./लीटर

8 पेट्रोल 254 रु./लीटर

9 एक कप चाय 100 रु.

 

●1949 के बाद सबसे बुरे हालात. ......

 

श्रीलंका में ईंधन की कमी की वजह से ज्यादातर बसें बंद कर दी गई हैं। लगभग ढाई करोड़ लोगों के घर में बिजली आपूर्ति ठप हो गई है। कारखाने और पॉवर प्लान्ट बंद हो चुके हैं। यहां लोगों का कहना है कि देश में 1948 के बाद से यानी 74 साल के बाद सबसे बुरे हालात हैं। श्रीलंका की जनता इसके लिए यहां की सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही है। 

 

●कर्ज चुकाने के लिए साढ़े सात अरब डॉलर की जरूरत

मीडिया रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि श्रीलंका के पास देश चलाने के लिए पैसे भी नहीं हैं। कोरोना महामारी, ईंधन की कमी और आसमान छूती महंगाई की वजह से देश संकट से जूझ रहा है। सरकारी खजाना खाली हो चुका है। श्रीलंका को आने वाले कुछ महीनों में घरेलू और विदेशी कर्ज चुकाने के लिए लगभग साढ़े सात अरब डॉलर की जरूरत है। 

●बिजली न होने से टल रहे ऑपरेशन

विश्लेषज्ञों के मुताबिक श्रीलंका की मुख्य समस्या विदेशी मुद्रा भंडार का खाली हो जाना है। इसकी वजह से सरकार जनता की जरूरत के मुताबिक ईंधन, खाद्य पदार्थों, और अन्य आवश्यक वस्तुओं का आयात नहीं कर पा रही है। ईंधन की कमी के कारण कई पेट्रोल पंपों पर लोगों को 12 से 13 घंटो तक कतार में खड़ा रहना पड़ा है। इस बीच कई सरकारी अस्पतालों में बिजली न होने के कारण रूटीन सर्जरी को टाला जा रहा है।

राहत पाने के लिए राजपक्षे सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का दरवाजा खटखटाया है। इसके अलावा उसने भारत और चीन से भी वित्तीय मदद ली है। खबर है कि भारत और चीन अतिरिक्त वित्तीय मदद देने पर भी विचार कर रहे हैं, जिससे श्रीलंका को तीन बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा प्राप्त होगी। खबरों के मुताबिक श्रीलंका को दोनों देशों में प्रत्येक से 1.5 बिलियन डॉलर की मदद का आश्वासन मिला है।

लेकिन अब आम जनता का सब्र टूटने के संकेत मिल रहे हैं। गुरुवार को राजधानी कोलंबो में बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ। उस दौरान कुछ लोगों ने छिटपुट हिंसा की। प्रदर्शन की शुरुआत शांतिपूर्ण ढंग से हुई। प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति राजपक्षे के आवास की तरफ बढ़ने लगे। टीवी चैनल अल-जजीरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक उसके संवाददाता से कई लोगों ने कहा कि राष्ट्रपति आवास की तरफ जाने का फैसला अचानक लिया गया। लोगों ने बताया कि ईंधन की कमी और बिजली में कटौती के कारण उनका जीना मुहाल हो गया है। इसीलिए अब वे सड़क पर उतरने को मजबूर हुए हैँ।

 

पर्यटन बंद होने से नुकसान

 

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक आम लोगों में राष्ट्रपति राजपक्षे के प्रति भारी नाराजगी देखी जा रही है। लोग अपनी मौजूदा मुश्किलों के लिए गोटबया राजपक्षे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। दूरदराज के इलाकों से प्रदर्शन में शामिल होने आए एक नौजवान ने अल-जजीरा से कहा- ‘हालत इतनी खराब है कि हम दो वक्त का खाना भी नहीं खा पा रहे हैं। ये सारी मुसीबतें राष्ट्रपति ने पैदा की हैं। उन्हें अपनी गद्दी छोड़नी ही होगी।’

 

विशेषज्ञों ने भी इस राय से सहमति जताई है कि वर्तमान दुर्दशा राजपक्षे सरकार के कुप्रबंधन का नतीजा है। उनके मुताबिक कोरोना महामारी के समय से ही राजपक्षे सरकार हालात को संभालने में नाकाम रही है। महामारी के दौरान पर्यटन ठहर जाने से सरकार का खजाना खाली हो गया। जब इसके संकेत मिले, सरकार को तभी आईएमएफ के पास जाना चाहिए था। लेकिन वह अनिर्णय की अवस्था में रही, जिसकी बहुत महंगी कीमत श्रीलंका के लोगों को चुकानी पड़ रही है।


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