Education world / शिक्षा जगत

पांचवीं से आठवीं क्लास तक परीक्षा में फेल बच्चे अब प्रमोट नहीं होंगे


 केंद्र सरकार ने शिक्षा नीति में बड़ा बदलाव किया है। सरकार ने नो डिटेंशन पॉलिसी खत्म कर दी है। इसका मतलब है कि अब बच्चे फेल होंगे तो उन्हें प्रमोट नहीं किया जाएगा। फेल होने वाले बच्चों की फिर से परीक्षा होगी और दोबारा फेल होने पर उनको उसी क्लास में रहना होगा। इससे पहले सर्व शिक्षा नीति के तहत बच्चों को फेल होने के बाद भी प्रमोट करने का नियम बनाया गया था। कहा गया था कि फेल होने से बच्चों का मनोबल गिरता है और उनके आत्मविश्वास को चोट पहुंचती है, जिससे वे स्कूल छोड़ देते हैं। बच्चे स्कूल न छोड़ें इसलिए नो डिटेंशन पॉलिसी लाई गई थी। उसे अब खत्म कर दिया गया है।

केंद्र सरकार की ओर से जारी नई अधिसूचना के मुताबिक फेल होने वाले छात्रों को दो महीने के अंदर दोबारा परीक्षा देने का मौका दिया जाएगा। अगर वे दोबारा फेल होते हैं, तो उन्हें प्रमोट नहीं किया जाएगा, बल्कि जिस क्लास में वो पढ़ रहे थे उसी में दोबारा पढ़ेंगे। सरकार ने इसमें एक प्रावधान भी जोड़ा है कि आठवीं तक के ऐसे बच्चों को स्कूल से निकाला नहीं जाएगा। वैसे देश के 16 राज्य पहले ही अपने यहां नो डिटेंशन पॉलिसी खत्म कर चुके हैं।

केंद्र सरकार की नई नीति का असर केंद्रीय विद्यालयों, नवोदय विद्यालयों और सैनिक स्कूलों सहित करीब तीन हजार से ज्यादा स्कूलों पर होगा। गौरतलब है कि 16 राज्य और दो केंद्र शासित प्रदेश, दिल्ली और पुडुचेरी नोडिटेंशन पॉलिसी पहले पहले ही खत्म कर चुके हैं। चूंकि स्कूली शिक्षा राज्य का विषय है, इसलिए राज्य इस संबंध में अपना निर्णय ले सकते थे। तभी राज्यों ने फेल बच्चों को प्रमोट करने का नियम बदलना शुरू कर दिया था।

बहरहाल, साल 2011 से आठवीं क्लास तक परीक्षा में फेल होने के प्रावधान पर रोक लगा दी गई थी। इसका मतलब यह था कि बच्चों के फेल होने के बावजूद अगली क्लास में प्रमोट कर दिया जाता था। लेकिन इससे शिक्षा के स्तर में गिरावट आने लगी। जिसका असर 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं पर पड़ने लगा। काफी लंबे समय से इस मामले पर विचार विमर्श के बाद नियमों में बदलाव कर दिया गया। गौरतलब है कि नो डिटेंशन पॉलिसी शिक्षा के अधिकार कानून 2009 का हिस्सा थी। भारत में शिक्षा की स्थिति में सुधार के लिए केंद्र सरकार ने यह पहल की थी। इसका मकसद बच्चों को शिक्षा के लिए बेहतर माहौल देना था ताकि वे स्कूल आते रहें। फेल होने से छात्रों की आत्मसम्मान को ठेस पहुंच सकती हैं, जिससे वे स्कूल छोड़ सकते हैं। इस वजह से आठवीं तक के बच्चों को फेल नहीं करने की नीति बनी थी।


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