मधुबनः विधानसभा क्षेत्र में कभी बजता था बसपा का डंका 17 चुनाव में बसपा को लगातार 4 बार मिल चुकी है जीत
मऊ। जनपद की मधुबन-353 विधानसभा की सीट पहली बार 2017 में भाजपा की लहर में जीत का रिकार्ड कायम करने में महारथ हासिल की थी। पहली बार भाजपा से दारा सिंह चौहान चुनाव जीतने में कामयाब रहे और प्रदेश की भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त किया। 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव का घोषणा होते ही दारा सिंह चौहान ने अपना पाला बदलते मंत्री पद व पार्टी से इस्तीफा देकर सपा में शामिल हो गए। राजनीति के क्षेत्र में इनकी पहचान यहां की जनता मौसम वैज्ञानिक से कम नहीं आंकती है।
श्री चौहान पूर्व में सपा से राज्यसभा सांसद रहे। फिर कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिए। बाद में बसपा की लहर आते देख दल बदल कर घोसी संसदीय सीट से सांसद बने। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की लहर देख बिना मौका गंवाए भाजपा में शामिल होकर विधायक बन गए और सरकार का गठन होते ही कैबिनेट मंत्री के रूप में ताज हासिल किया था।
विधानसभा का चुनावी बिगुल बजते ही मंत्री दारा सिंह चौहान ने अपने पद से इस्तीफा देकर साइकिल पर सवार हो गए। यहां तक कि इनका पार्टी बदलना कोई नई बात नहीं।
एक बारगी विधानसभा के 17 चुनावों पर नजर डाले तो नए परिसीमन के तहत वर्ष 2012 में मधुबन विधानसभा आस्तित्व में आई। इससे पहले विधानसभा क्षेत्र-307 नत्थूपुर नाम से था। नए परिसीमन में 2012 में मधुबन -353 विधानसभा का उदय हुआ। इस सीट पर सबसे ज्यादा 4 बार बसपा ने जीत दर्ज की है। वर्ष 1992 के विधानसभा चुनाव में पहली बार सपा व बसपा के गठबंधन में राजेन्द्र कुमार ने जीत हासिल कर बसपा के पक्ष में खाता खोलने में सफलता पाई थी। वर्ष 1997 में सपा के सुधाकर सिंह ने बसपा को हराकर सपा के पक्ष में जीत दर्ज कराई। फिर दुबारा बसपा के स्व. कपिलदेव यादव ने वर्ष 2002 में जीत हासिल किया था। इसके बाद से बसपा के पक्ष में जीत का सिलसिला वर्ष 2012 तक चलता रहा। इसमें बसपा की हाथी पर सवार होकर वर्ष 2002 से वर्ष 2012 तक यानि दो चुनावों में लगातार उमेशचंद्र पांडेय ने जीत हासिल की थी। वर्ष 2017 में भाजपा की लहर में बसपा प्रत्याशी उमेशचंद्र पांडेय ने हैट्रिक लगाने में असफल रहे। इस चुनाव में पहली बार मधुबन विधानसभा चुनाव कमल खिलाने में दारा सिंह चौहान कामयाब रहे। विकास के मुद्दे पर क्षेत्र की जनता ने दारा सिंह चौहान को वोट दिया था। क्षेत्र में सड़क, बिजली व अन्य हुए विकास कार्य का श्रेय जनता दारा सिंह, मोदी व योगी की भाजपा सरकार को देती रही।
वैसे तो मधुबन के दौरान चल में यदि चुनावी रंगत की बात की जाए तो
बरसात के समय घाघरा नदी के उफान व कटान से तबाही झेल रहे लोगों की पीड़ा सुनने वाला आज भी कोई नहीं है भले ही केंद्र और प्रदेश में भाजपा की सरकार हो वही हाल आग लगने के समय भी सदैव देखने को मिलता है।
पिछले वर्ष कोरोना महामारी के तांडव के दौरान क्षेत्र की जनता की सुधि न लेने को लेकर लोग इनसे खासे नाराज रहे।
मधुबन विधानसभा में पिछड़ा वर्ग में लोनिया, यादव, वैश्य, सैंथवार, कुम्हार, लोहार, मौर्य, कुर्मी, मल्ल, मुस्लिम आदि अनुसूचित जाति में चमार, खटिक, धोबी, दुसाध, तुरहा, सवर्ण में क्षत्रिय, ब्राम्हण, भुमिहार, कायस्थ व अनुसूचित जन जाति के लोग शामिल हैं।
यहां के मतदाताओं की आबादी लगभग 3 लाख 92 हजार 392 है। इनमें 2,10818 पुरूष मतदाता व 1,81534 महिला व 41 थर्ड जेंडर मतदाता हैं। 392392 मतदाता 7 मार्च को मधुबन के प्रत्याशियों के भविष्य तय करेंगे।
शहीदों की धरती के मधुबन विधानसभा का चुनाव की तिथि जैसे-जैसे निकट आ रही है, वैसे-वैसे चट्टी-चौराहों पर पार्टियों के सम्भावित प्रत्याशी समर्थक टिकट को लेकर तरह-तरह के कयास लगा रहे हैं। हालांकि अभी तक कांग्रेस व बसपा ने अपने प्रत्याशी की घोषणा कर चुकी है। लेकिन भाजपा व सपा ने अभी तक प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है।
बाहर हाल अभी तक विभिन्न दलों से टिकट की घोषणा होना बाकी है ऐसे में चुनावी वैतरणी किस करवट जाएगी या तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
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