कार्तिक शुक्ल षष्ठी में सूर्योपासना का महापर्व हैं छठ
अतरौलिया आजमगढ़। सूर्योपासना का महापर्व छठ कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है। यह उत्तर भारत का एक महत्वपूर्ण लोग उत्सव है। सूर्योपासना के इस विशिष्ट अनुष्ठान का श्रीगणेश दीपावली के बाद कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से ही प्रारंभ हो जाता है। और सप्तमी को सूर्योदय के समय अध्र्य निवेदन (भूखा अरघ) के साथ समाप्त होता है। इसे ललरी छठ, केतकी छठ, डाला छठ भी कहते हैं। श्रद्धा, आस्था और अस्मिता से जुड़ा होने के कारण यह पर्व विशेष उल्लास और उमंग के साथ मनाया जाता है। वास्तव में यह भगवान सूर्य की आराधना, पूजा- अर्चना का पर्व है। जो विशेष फलदायक है। वेदों और पुराणों के अनुसार भारत में आदिकाल से ही सूर्योपासना की समृद्ध परंपरा रही है। संभवतः इसी कारण ही देश के विभिन्न भागों में सूर्य मंदिर निर्मित कराए गए, जहां आज की सूर्योपासना होती है। छठ पर्व को इस परंपरा का बृहद रूप कर सकते हैं। सूर्य अर्थात आलोक, जीवन एवं उष्मा के द्योतक छठ के रूप में उन्हीं की पूजा अभ्यर्थना की जाती है। यह पर्व सुख शांति, समृद्धि, वैभव का वरदान तथा मनोवांछित फल दायक माना जाता है
वैसे तो या स्त्रियों की कठिन साधना का पर्व है पर इसे करने वाली स्त्रियां सदैव धन-धान्य, सुख -समृद्धि तथा पति- पुत्र से परिपूर्ण रहती हैं। और संसार के समग्र सुख भोगकर परम गति को प्राप्त होती हैं। मान्यतानुसार भगवान श्री राम के वनवास से लौटने पर राम और सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन उपवास रखकर प्रत्यक्ष देव भगवान भास्कर की आराधना की और सप्तमी के दिन व्रत पूर्ण किया। पवित्र सरज के तट पर राम- सीता के इस अनुष्ठान से प्रसन्न होकर भगवान सूर्यदेव ने उन्हें आशीष दिया था, तभी से यह पर्व लोकप्रिय हो गया। एक पौराणिक आख्यान के अनुसार कार्तिक शुक्ल षष्ठी के सूर्यास्त और साप्तमी के सूर्योदय के मध्य वेद माता गायत्री का आविर्भाव हुआ था। ब्रह्मर्षि वशिष्ठ से प्रेरित होकर राजर्षि विश्वामित्र के मुख से गायत्री मंत्र नामक यजुष का प्रसव हुआ था। यह व्रत बड़े नियम एवं निष्ठा से किया जाता है।
Leave a comment