अनुवाद से ही मिलते हैं दूसरे धर्म ग्रंथों की जानकारी: प्रो. निर्मला एस. मौर्य
•साहित्य के क्षेत्र में अनुवाद का महत्व विषय पर हुआ व्याख्यान
जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफ़ेसर निर्मला एस. मौर्य ने कहा कि जिस भाषा से अनुवाद किया जाता है, वह मूल भाषा या स्रोत भाषा है। उससे जिस नई भाषा में अनुवाद करना है, वह लक्ष्य भाषा कहलाती है। अगर अनुवाद नहीं होता तो हम दूसरे धर्म के ग्रंथों को नहीं पढ़ पाते ना उसके विषयवस्तु को समझ पाते।
कुलपति प्रोफेसर मौर्य रविवार को चेन्नई के नुगमबक्कम लोयला कालेज के हिंदी विभाग की ओर से साहित्य के क्षेत्र में अनुवाद का महत्व विषय पर बतौर अतिथि आनलाइन व्याख्यान में बोल रहीं थीं।
उन्होंने कहा कि दूसरी भाषा के साहित्य से अपनी भाषा के साहित्य को समृद्ध करना। दूसरी भाषाओं की शैलियों, मुहावरों, दार्शनिक तथ्यों वैज्ञानिक एवं तकनीकी ज्ञान को प्राप्त करना। विचारों का विनिमय करना।
उन्होंने अनुवाद के प्रकार पर विस्तृत रूप से चर्चा की। कहा कि साहित्यानुवाद, कार्यालयी अनुवाद, विधिक अनुवाद, आशुअनुवाद, वैज्ञानिक एवं तकनीकी अनुवाद, वाणिज्यिक अनुवाद आदि को उदाहरण के साथ समझाया।
Leave a comment