भगत सिंह ने 4 अक्टूबर 1930 को अपने पिता, किशन सिंह, को एक महत्वपूर्ण पत्र लिखा था...
भगत सिंह ने 4 अक्टूबर 1930 को अपने पिता, किशन सिंह, को एक महत्वपूर्ण पत्र लिखा था। यह पत्र उस समय लिखा गया जब उनके पिता ने अदालत में याचिका दायर कर उनके लिए दया की अपील की थी। इस पत्र में भगत सिंह ने अपने विचारों और बलिदान की भावना को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया था।
पत्र का मुख्य अंश:
"मुझे यह जानकर बहुत दुःख हुआ कि आपने मेरी ओर से दया याचिका दायर की है। हमने जानबूझकर फाँसी का सामना करने का फैसला किया है और इसे खुशी-खुशी स्वीकार करेंगे। मुझे किसी दया की आवश्यकता नहीं है। मैं क्रांति के उद्देश्य के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने जा रहा हूँ। मैं चाहता हूँ कि आप मेरी ओर से कोई दया याचिका न दायर करें, क्योंकि यह हमारे आदर्शों के खिलाफ है।"
उन्होंने अपने पिता से अपील की कि वे ब्रिटिश सरकार से किसी तरह की दया की माँग न करें और अपने बलिदान को देश की आज़ादी के संघर्ष के रूप में स्वीकार करें।
इस पत्र का महत्व:
- यह पत्र भगत सिंह के दृढ़ संकल्प और बलिदान की भावना को दर्शाता है।
- इसमें उनके क्रांतिकारी विचारों और आत्मसम्मान की झलक मिलती है।
- उन्होंने स्पष्ट किया कि वे स्वतंत्रता संग्राम में अपने बलिदान को एक महान उद्देश्य के रूप में देखते हैं, न कि दया की भीख माँगने योग्य किसी कृत्य के रूप में।
भगत सिंह का यह पत्र भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक प्रेरणादायक दस्तावेज़ के रूप में दर्ज है।















































































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