अवधी भाषा लोक संस्कृति और मर्यादा का पर्याय - डॉ.राधेश्याम सिंह
●सुलतानपुर में हुआ अवधी साहित्यकारों का सम्मान और परिचर्चा
सुलतानपुर । 'अवधी मर्यादा में रहना सिखाने वाली भाषा है । आज भोजपुरी समेत अनेक लोक भाषाओं ने मर्यादा को तोड़ दिया है लेकिन अवधी लोक संस्कृति और मर्यादा का पर्याय बनी हुई है ।' यह बातें के.एन.आई प्राचार्य डॉ.राधेश्याम सिंह ने कहीं । वे अवध ज्योति रजत जयंती सम्मान समारोह में आयोजित परिचर्चा 'अवधी साहित्य और सुलतानपुर' को बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित कर रहे थे ।
उन्होंने कहा कि अवधी जोर का धक्का धीरे से देने वाली भाषा है ।अवध विश्वविद्यालय में अवधी पीठ की स्थापना होनी चाहिए ।
समारोह के विशिष्ट वक्ता राणा प्रताप स्नातकोत्तर महाविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह रवि ने कहा - सुलतानपुर अवधी साहित्य एवं भाषा का केंद्र बिंदु रहा है । यहां साहित्य की सुदीर्घ परंपरा रही है ।आधुनिक युग में गद्य ,पद्य की अनेक विधाओं में सुलतानपुर के अवधी साहित्यकार काफी चर्चित हैं ।
ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह'रवि' ने कहा कि अवधी भारत की इकलौती लोकभाषा है जिसने भारतीय साहित्य में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है ।
अवध भारती संस्थान हैदरगढ़ द्वारा पयागीपुर स्थित एक निजी सभागार में आयोजित इस समारोह में अवधी साहित्य व संस्कृति में विशिष्ट योगदान देने वाले डॉ.आद्या प्रसाद सिंह प्रदीप , जगदीश पीयूष , जयंत त्रिपाठी, मथुरा प्रसाद सिंह जटायु , डॉ.सुशील कुमार पाण्डेय साहित्येन्दु , डॉ.अर्जुन पाण्डेय , डॉ.राधेश्याम सिंह , रामशब्द मिश्र , कुसुम वर्मा , डॉ ओंकार नाथ द्विवेदी, मोहम्मद सलमान अंसारी, श्रीनारायण लाल श्रीश व कुसुम वर्मा को अंगवस्त्र , पुस्तक , स्मृति चिन्ह , सम्मान पत्र आदि देकर अवध ज्योति रजत जयंती सम्मान प्रदान किया गया ।
समारोह में प्रतापगढ़ के अनीस देहाती , रायबरेली के इंद्रेश भदौरिया,संत प्रसाद , डॉ संतलाल ,पवन कुमार सिंह आदि ने काव्य पाठ किया ।
समारोह का संचालन डॉ.ओंकारनाथ द्विवेदी व अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार जगदीश पीयूष ने किया । स्वागत व आभार ज्ञापन कार्यक्रम संयोजक डॉ. राम बहादुर मिश्र ने किया ।
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