केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम तक सीधी रेखा में बनें हैं ये महाभोले के मंदिर, जानें क्या है इसके पीछे का रहस्य
Shiv Shakti Aksh Rekha: भगवान शंकर जिन्हें देवों का देव महादेव कहा जाता है। भोलेनाथ की कृपा जिस किसी पर हो जाती है उसकी जिंदगी संवर जाती है। भोलेनाथ के देशों में अनेकों मंदिर हैं। लेकिन शिव जी की 12 ज्योतिर्लिंग प्रमुख मानी जाती है। पूरे भारत में बने शिव मंदिर और ज्योतिर्लिंगों से कुछ न कुछ मान्यताएं जुड़ी है और सभी से कुछ रहस्य भी है। लेकिन क्या आप जानते हैं की भारत में 7 ऐसे शिव मंदिर है जो केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम तक एक सीधी रेखा में बनाए गए हैं। और इन सभी मंदिरों का निर्माण अलग अलग समय पर हुआ है।
उत्तराखंड के केदारनाथ और दक्षिण भारत के रामेश्वरम में बहुत ही गहरा संबंध है। दोनों के बीच की दूरी लगभग 2,382 किलोमीटर है। दोनों ही ज्योतिर्लिंग देशांतर रेखा यानी लॉन्गिट्यूड पर 79 डिग्री पर मौजूद हैं। इन दो ज्योतिर्लिंगों के बीच पांच ऐसे शिव मंदिर भी हैं जो सृष्टि के पंच तत्व यानी जल, वायु, अग्नि, आकाश और धरती का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिसमें श्रीकालाहस्ती शिव मंदिर जल, एकाम्बेश्वरनाथ मंदिर अग्नि, अरुणाचलेश्वर मंदिर वायु, जम्बूकेश्वर मंदिर पृथ्वी और थिल्लई नटराज मंदिर आकाश का प्रतिनिधित्व करते हैं।
सारे मंदिर देशांतर रेखा 79 डिग्री पर हैं मौजूद
ये सारे मंदिर दोनों के बीच में आते हैं और ये भी देशांतर रेखा (लॉन्गिट्यूड) पर 79 डिग्री पर मौजूद हैं। लेकिन सभी मंदिरों की स्थापना अलग-अलग समय में हुई।इन 7 शिव मंदिरों का एक ही सीधी रेखा में होना महज संयोग नहीं हो सकता। क्योंकि इन मंदिरों का निर्माण लगभग 4 हजार पहले किया गया था। उस समय स्थान के अक्षांश और देशांतर को मापने के लिए कोई तकनीक उपलब्ध नहीं थी। लेकिन इसके बावजूद यौगिक गणना के आधार पर ये मंदिर बनाए गए। जो काफी अद्भूत है।
सभी ज्योतिर्लिंग का केंद्र है महाकालेश्वर
सभी ज्योतिर्लिंग का केंद्र उज्जैन के महाकालेश्वर को माना जाता है। पहले के समय में इसी जगह से पूरे विश्वभर का समय निर्धारित होता था। बाद में जब पृथ्वी पर काल्पनिक रेखा कर्क का निर्धारण हुआ तब उस रेखा का मध्य उज्जैन निकाला गया।
इन मंदिरों की स्थापना न केवल अक्षांश और देशांतर बल्कि वास्तु सिद्धांतों के अनुसार भी की गई है। एक ही रेखा में बने इन 7 शिव मंदिरों को ‘शिव शक्ति अक्ष’ रेखा भी कहा जाता है।
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