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भारत रत्न नानाजी देशमुख: जीवन परिचय, योगदान और सम्मान

नानाजी देशमुख एक प्रखर राष्ट्रवादी, समाजसेवी, शिक्षाविद और भारतीय राजनीति के ऐसे महानायक थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। उन्हें 2019 में मरणोपरांत "भारत रत्न" से सम्मानित किया गया और वे "राष्ट्र ऋषि" के रूप में विख्यात हुए।


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1. जीवन की कड़ियां (जीवन परिचय)

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

पूरा नाम: चंडिकादास अमृतराव देशमुख

जन्म: 11 अक्टूबर 1916, कडोली, महाराष्ट्र

मृत्यु: 27 फरवरी 2010, सतना, मध्य प्रदेश

बचपन में ही उन्होंने शिक्षा के प्रति रुचि दिखाई और कठिन परिस्थितियों के बावजूद पढ़ाई जारी रखी।

वे लोकमान्य तिलक, स्वामी विवेकानंद और डॉ. हेडगेवार से प्रेरित थे।

संघ से जुड़ाव और जनसंघ की स्थापना

नानाजी किशोरावस्था में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े।

संघ के प्रचारक के रूप में उन्होंने उत्तर प्रदेश में संगठन को मजबूत किया।

1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के साथ मिलकर भारतीय जनसंघ की स्थापना की।

उन्होंने उत्तर प्रदेश में जनसंघ को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

राजनीतिक जीवन और संन्यास

1967 में बलरामपुर (उत्तर प्रदेश) से लोकसभा चुनाव जीता।

1974 में जयप्रकाश नारायण के "संपूर्ण क्रांति" आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।

1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद उन्हें मंत्री पद की पेशकश हुई, लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया।

60 वर्ष की आयु में राजनीति से संन्यास लेकर समाज सेवा में लग गए।

2. देश के लिए योगदान (समाज सेवा और ग्रामीण विकास)

चित्रकूट: ग्रामोदय मॉडल की शुरुआत

राजनीति छोड़ने के बाद उन्होंने चित्रकूट (उत्तर प्रदेश-मध्य प्रदेश सीमा) को अपने कार्यक्षेत्र के रूप में चुना और इसे आदर्श ग्राम बनाने का संकल्प लिया।

1. डीएवीपी (Deendayal Research Institute - DRI) की स्थापना

यह संस्थान ग्रामीण विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि क्षेत्र में कार्य करता है।

"स्वावलंबी ग्राम" मॉडल को बढ़ावा दिया।
2. ग्रामोद्योग और रोजगार

स्थानीय संसाधनों के उपयोग से ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा दिया।

कृषि आधारित उद्योग, जैविक खेती और जल संरक्षण पर जोर दिया।

3. शिक्षा और स्वास्थ्य

ग्रामीण शिक्षा को मजबूत करने के लिए प्राथमिक और व्यावसायिक शिक्षा केंद्र खोले।

महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए शिक्षा और स्व-रोजगार योजनाएं शुरू कीं।

4. सामाजिक समरसता और स्वराज

ग्राम विकास के माध्यम से आत्मनिर्भरता का संदेश दिया।

"हर हाथ को काम, हर खेत को पानी" का लक्ष्य रखा।

3. भारत रत्न और राष्ट्र ऋषि की उपाधि

भारत रत्न (2019)

नानाजी देशमुख को 2019 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उनके सामाजिक उत्थान, ग्रामीण विकास और राष्ट्रनिर्माण में अभूतपूर्व योगदान के लिए दिया गया।

"राष्ट्र ऋषि" की उपाधि

नानाजी देशमुख केवल एक राजनेता नहीं बल्कि एक विचारक, समाज सुधारक और मार्गदर्शक थे।

उनके विचार और कार्यभार किसी ऋषि की तरह थे, जो समाज को नई दिशा देने के लिए समर्पित रहते हैं।

इसलिए उन्हें "राष्ट्र ऋषि" कहा जाता है।

4. विरासत और प्रेरणा

नानाजी देशमुख का जीवन हमें निःस्वार्थ सेवा, स्वावलंबन और ग्रामीण विकास का संदेश देता है।

उनके द्वारा विकसित "स्वावलंबी ग्राम" मॉडल को आज भी देश में एक आदर्श के रूप में देखा जाता है।

उनकी सोच और कार्यों से प्रेरणा लेकर कई संगठन ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं।

नानाजी देशमुख केवल एक नेता नहीं बल्कि एक विचार, एक दर्शन और एक संकल्प थे। उन्होंने भारतीय राजनीति, समाज सुधार, और ग्रामीण उत्थान में जो योगदान दिया, वह सदैव प्रेरणादायक रहेगा। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि अगर इच्छाशक्ति और समर्पण हो, तो समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है।


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