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क्या होता है डाउन सिंड्रोम आइये जानते हैं....

डाउन सिंड्रोम में फिजिकल, मेंटल, और साइकोलॉजिकल लक्षण दिखाई देते हैं. इसे मोंगोलॉयड सिंड्रोम भी कहते हैं.

फिजिकल पार्टः हाइपोटोनिया होता है यानी मसल्स टोन नहीं होते हैं, जिससे हाथ या पैर को उठाने में दिक्कत होती है. आंखों की बनावट ऊपर की तरफ़ होती है. नाक चपटी होती है. जीभ मोटी और बाहर होती है. सिर चपटा होता है, गर्दन छोटी होती है.कान छोटे होते हैं. हाथ छोटे, मोटे होते हैं. छोटी उंगली काफ़ी छोटी होती है

मेंटल: जिन बच्चों को डाउन सिंड्रोम होता है उन बच्चों का IQ कम होता है. IQ 50 से कम होता है. समय के साथ और कम होता जाता है. बोलने में दिक्कत आती है. जिन बच्चों को डाउन सिंड्रोम होता है वो इम्पल्सिव होते हैं, अटेंशन स्पैन बहुत कम होता है. वातावरण में कोई बदलाव होता है तो वो नोटिस नहीं कर पाते.-डाउन सिंड्रोम एक जेनेटिक डिसऑर्डर है

-हर बच्चे में 46 क्रोमोज़ोन (DNA का एक हिस्सा) होते हैं

-23 मां से मिलते हैं. 23 पिता से आते हैं

-अगर बच्चे में 47 क्रोमोज़ोन होते हैं तो उसे डाउन सिंड्रोम होता है

-अगर मां की उम्र 35 साल से ज़्यादा और पिता की उम्र 40 साल से ज़्यादा है तो भी डाउन सिंड्रोम होने के चांसेज़ बढ़ जाते हैं

-परिवार में और भी किसी को डाउन सिंड्रोम है, तो भी ये हो सकता है.

– हिंदुस्तान में 25 से 30 हज़ार बच्चे डाउन सिंड्रोम से ग्रसित पैदा होते हैं

– हर 700 में से एक बच्चा डाउन सिंड्रोम से ग्रसित होता है

डाउन सिंड्रोम क्या होता है. क्यों होता है आपने ये समझ लिया. पर क्या इसका कोई इलाज है?-डाउन सिंड्रोम का पूरी तरह कोई इलाज नहीं है

-ये एक सिंड्रोम है. यानी कई लक्षणों का मिश्रण है

-इसमें सिम्प्टमेटिक ट्रीटमेंट करना पड़ता है

-अलग-अलग थैरेपी से इलाज किया जाता है. जैसे फिजिकल थैरेपी, ऑक्यूपेशनल थैरेपी, व्यवहारिक थैरेपी

-पर जितना जल्दी हो सके उतना अच्छा है. क्योंकि अगर थैरेपी शुरू से चलती है तो अच्छा आउटकम देखने को मिलताभ्रूण में क्रोमोजोम की मात्रा अधिक होने पर बच्चों में डाउन सिंड्रोम की बीमारी होती है। इससे पीड़ित बच्चों की मांसपेशियां हो जाती हैं कमजोर और वह नॉर्मल बच्चों से अलग व्यवहार करता है।पवन यादव
डाउन सिंड्रोम बच्चों में जन्मजात होने वाली गंभीर बीमारियों में से एक है। पीड़ित बच्चों का शारीरिक, मानसिक विकास सामान्य बच्चों की तरह नहीं होता। ऐसे में बच्चे को उत्साहित करेंगे तो उनका सिंड्रोम काबू में रहेगा। यह बीमारी भ्रूण में क्रोमोजोम की मात्रा अधिक होने से होता है। बच्चों का विकास शारीरिक विकृतियों से होता है।क्रोमोजोम की असमानता से होता है डाउन सिंड्रोम
गुड़गांव के सिविल हॉस्पिटल की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. रश्मि बताती हैं कि डाउन सिंड्रोम एक आनुवंशिक समस्या है, जो क्रोमोजोम की वजह से होती है। गर्भावस्था में भ्रूण को 46 क्रोमोजोम मिलते हैं, जिनमें 23 माता व 23 पिता के होते हैं। लेकिन,डाउन सिंड्रोम पीड़ित बच्चे में 21वें क्रोमोजोम की एक प्रति ज्यादा होती है, यानी उसमें 47 क्रोमोजोम पाए जाते हैं, जिससे उसका मानसिक व शारीरिक विकास धीमा हो जाता है
बच्चों का ठीक से नहीं हो पाता है विकास
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रदीप कुमार बताते हैं कि डाउन सिंड्रोम पीड़ित बच्चों में लक्षण हल्के से लेकर गंभीर तक हो सकते हैं। ऐसे बच्चों की मांसपेशियां कम ताकतवर होती हैं। हालांकि उम्र बढ़ने के साथ मांसपेशियों की ताकत बढ़ती रहती है, लेकिन सामान्य बच्चों की तुलना में बैठना, चलना या उठना सीखने में ज्यादा समय लेते हैं। बौद्धिक, मानसिक व शारीरिक विकास धीमा होता है।ये है डाउन सिंड्रोम की पहचान
कई बच्चों के चेहरे पर अजीब से लक्षण दिखते हैं, जैसे कान छोटा होना, चेहरा सपाट होना, आंखों का तिरछापन, जीभ बड़ी होना आदि। बच्चों की रीढ़ की हड्डी में भी विकृत हो सकती है। कुछ बच्चों को पाचन की समस्या भी हो सकती है तो कई बच्चों को किडनी संबंधित परेशानी हो सकती है। इनकी सुनने-देखने की क्षमता कम होती है।

सकारात्मक रवैये से जी सकते हैं सामान्य जीवन
वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ और सिविल सर्जन डॉ. ब्रह्मदीप सिंधू बताते हैं कि डाउन सिंड्रोम से पीड़ित रोगी के लिए परेशानियां कई होती हैं, लेकिन अभिभावक बच्चे को उत्साहित करें तो कम हो सकती हैं। ऐसे बच्चे के प्रति सकारात्मक रवैया रखें। बच्चे के पोषक तत्वों पर भी ध्यान देना चाहिए। ऐसे बच्चों को ज्यादा सुरक्षित घेरे में न रखें।


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