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नेताजी के कहने पर अखिलेश संग आए शिवपाल के मन में 'ठगे' रह जाने का है दर्द, चाचा-भतीजे के रिश्ते में फिर से.....

भाजपा को शिकस्त देकर उत्तर प्रदेश की सत्ता में काबिज होने को बेकरार समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने रिश्तों में आई खटास को दूर करते हुए विधानसभा चुनाव से पहले अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को गठबंधन में शामिल तो कर लिया है मगर सत्ता की खातिर दोनों के बीच हुआ यह समझौता कितना टिकाऊ साबित होगा, इसे लेकर संशय के बादल मंडरा रहे हैं। इटावा में अपनी परंपरागत सीट जसवंतनगर से शिवपाल सपा के चुनाव चिह्न साइकिल के साथ चुनाव मैदान पर हैं, मगर उम्मीद से कोसों दूर उनकी पार्टी को गठबंधन में सिर्फ इसी सीट की हिस्सेदारी से संतुष्ट होना पड़ा है जबकि उनकी पार्टी के कई उम्मीदवार चुनाव जीतने की स्थिति में थे, नतीजन प्रसपा के कई पदाधिकारी पार्टी छोड़ कर अन्य दलों का रुख कर चुके हैं। शिवपाल के मन की यह टीस रह रह कर उनके बयानों से झलकती रहती है।
चुनाव प्रचार के दौरान एक ढाबे में रुके शिवपाल का दर्द उनकी जुबान से बाहर आ गया। उन्होंने कहा कि वह अपने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव का बेहद सम्मान करते हैं और उन्हीं के कहने पर सपा गठबंधन का हिस्सा बने थे। उन्होंने कहा, ''नेताजी कहते थे कि कम से कम 100 सीटें लेना, फिर बोले कम से कम से 200 सीटें लेना लेकिन मैंने तो केवल 100 ही मांगी थी मगर उन्होंने अखिलेश ने कहा कि कुछ कम कर दो, तो पहले 65, फिर 45 और फिर 35 कर दी, फिर बोले यह भी ज्यादा है फिर मैंने कहा कि सर्वे करा लो, जितने भी हमारे जीतने वाले लोग हों, उन्हीं को टिकट दे दो । हम तो समझते थे कि कम से कम 20 या 25 लोगो को टिकट दे देंगे।''उन्होंने कहा, ''हमारी सूची में सभी जीतने वाले लोग थे। अगर हमारी मान ली होती तो इटावा सदर सीट पर कितना बढ़िया चुनाव होता। एकतरफा चुनाव होता लेकिन जब सूची निकली, तब केवल एक सीट मिली इसलिए हम चाहते है कि सबसे बड़ी जीत इस सीट पर उत्तर प्रदेश में होनी चाहिए।''
शिवपाल ने कहा, ''अखिलेश यादव को सीएम बनाने के लिए हमने अपनी पार्टी का बलिदान कर दिया, जबकि एक वर्ष पूर्व हमने सौ टिकटों की घोषणा कर दी थी, सामाजिक परिवर्तन रथ यात्रा भी निकाली। जनता का अपार प्यार मुझे मिला। इसलिए अब हमारी अपील है कि जसवंतनगर विधानसभा से इतनी बड़ी जीत करवा देना, जिससे हमारा बलिदान बेकार न जाए। करहल में सबसे बड़ी जीत होगी या जसवंतनगर में, इसका मुकाबला है।'' शिवपाल ने कहा कि वह भतीजे के प्रचार के लिए हम करहल भी जाएंगे। करीबी पूर्व सांसद रघुराज सिंह के भाजपा में शामिल होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि टिकट न मिलने से नाराज होंगे इसलिए छोड़ गए। प्रसपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पार्टी ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर तो लिया है, लेकिन शिवपाल यादव इससे संतुष्ट नहीं हैं। वे अपने बेटे को भी चुनाव लड़ाना चाहते थे, लेकिन उसे भी टिकट नहीं मिला। वे खुद भी सपा के चुनाव चिह्न पर ही जसवंतनगर से चुनाव लड़ रहे हैं और सिर्फ इसी सीट पर सिमट कर रह गए। चुनाव में जसवंतनगर से बाहर नहीं निकले हैं। यहां तक कि करहल में दिखाई नहीं दे रहे, जबकि इस सीट पर इनका दबदबा रहा है। शिवपाल यादव ने 28 जनवरी को जसवंतनगर से नामांकन दाखिल किया था। इसके बाद अखिलेश यादव ने 31 जनवरी को नामांकन भरा, लेकिन शिवपाल तब भी करहल नहीं पहुंचे। इलाके में शिवपाल की अखिलेश से इस दूरी को लेकर खासी चर्चा है।।


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