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गंगा में हरे पानी का साइडइफेक्ट, गंगा किनारे वालों में दस गुना बढ़ा एमएनडी का खतरा

गंगा में हरे पानी का साइडइफेक्ट, गंगा किनारे वालों में दस गुना बढ़ा एमएनडी का खतरा

वाराणसी। धार्मिक नगरी काशी में पिछले कुछ दिनों से भारी मात्रा में शैवाल आने से गंगा का पानी पूरी तरह हरा हो गया है, इसे लेकर लोगों में तरह-तरह की आशंकाए बनी हुई हैं। यह गंगा में रहने वाले जीवों के लिए तो खतरनाक साबित होगा ही साथ में गंगा पट्टी में रहने वालों की मुसीबत भी बढ़ने वाली है। शैवालों से मोटर न्यूरॉन डिजीज (एमएनडी) का खतरा दस गुना बढ़ने की आशंका को बल दिया है। जो लोग पहले से इस बीमारी से ग्रसित हैं, उनके लिए संकट और भी अधिक है।

इसके कारण का खुलासा करते हुए बीएचयू के वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. वीएन मिश्रा ने VNS TODAY से बताया कि शैवाल की मौजूदगी क्रोमियम, एल्युमीनियम, आर्सेनिक और लेड जैसे खतरनाक तत्वों की मात्रा बढ़ने का कारण बनेगी।

एमएनडी के संभावित खतरों की पड़ताल करने के लिए एक बार फिर नए सिरे से अध्ययन शुरू किया जा रहा है। जीवित अथवा मृत मरीजों की केस हिस्ट्री, गंगा पट्टी के खेतों की मिट्टी, उनमें होने वाली फसल और तटवर्ती इलाकों में गंगाजल का परीक्षण इस अध्ययन का हिस्सा होगा । यह अध्ययन कानुपर से बिहार तक गंगा के दोनों किनारों के उन्हीं गांवों में पुन: किया जाएगा जहां पिछली बार शोध टीम ने काम किया था।

क्या होता है एमएनडी में

पिछले कुछ सालों में गंगा के दोनों किनारों के 20-20 किमी के अंदर रहने वालों में एमएनडी के आठ हजार रोगी पाए गए थे। मोटर न्यूरॉन डिजीज से ग्रसित रोगी सबसे पहले कमजोरी का शिकार होता है। शरीर में कंपन और धड़कन बढ़ जाती है। चलने ओर निगलने में परेशानी होती है। भोजन करते समय निवाला सरक जाने से खांसते-खांसते रोगी की मृत्यु तक हो सकती है।


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