आश्विन नवरात्र यानी शारदीय नवरात्र का हिंदू धर्म में विशेष महत्व , जानिए कथा
आश्विन नवरात्र यानी शारदीय नवरात्र का हिंदू धर्म में विशेष महत्व माना जाता है। इस दौरान मां अंबे की विधि विधान पूजा की जाती है और भक्तजन सुबह-शाम अपने घर में माता रानी की आरती करते हैं। इस साल ये नवरात्र 3 अक्टूबर से 11 अक्टूबर तक चलेंगे। इन नौ दिनों में माता की उपासना के समय नवरात्रि की कथा पढ़ना बिल्कुल भी न भूलें। चलिए आपको बताते हैं शारदीय नवरात्रि की पौराणिक कथा।
प्राचीन काल में किसी नगर में पीठत नाम का एक ब्राह्मण रहता था, जो मां दुर्गा का बड़ा भक्त था। उसकी एक सुंदर कन्या थी जिसका नाम सुमति था। समुति के पिता रोजाना जब मां दुर्गा की पूजा करके होम किया करता था तब उनकी बेटी समुति वहां उपस्थित रहती थी। एक दिन ब्राह्मण की कन्या अपनी सहेलियों के साथ खेल में लगने के कारण पूजन में उपस्थित नहीं हुई। जिस पर उसके पिता को क्रोध आ गया और वह पुत्री से कहने लगे अरी दुष्ट पुत्री! आज तूने मां भगवती का पूजन नहीं किया है, इस कारण मैं तेरा विवाह किसी कुष्ट रोगी से करूंगा। यही तेरी सजा होगी।
पिता के मुख से ये बात सुनकर सुमति को बड़ा दुख हुआ। इसके बाद कन्या का विवाह एक कुष्टी के साथ हो गया। सुमति सोचने लगी- अहो! मेरा बड़ा दुर्भाग्य है जिससे मुझे ऐसा पति मिला। चिंतित मन से कन्या अपने पति के साथ वन में चली गई। जहां वह बड़े कष्ट में रहने लगी। देवी भगवती उस कन्या के पूर्व पुण्य के प्रभाव से उसके सामने प्रकट हुईं और उन्होंने सुमति से कहा- हे दीन ब्राह्मणी! मैं तुझसे प्रसन्न हूं, तुम जो चाहो वरदान मांग सकती हो। इस पर उस बालिका ने कहा कि आप कौन हैं? इस पर देवी ने कहा कि मैं आदि शक्ति भगवती हूं और मैं ही ब्रह्मविद्या व सरस्वती हूं। हे ब्राह्मणी! मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं।
देवी भगवती ने उस कन्या को उसके पूर्व जन्म के बारे में बताते हुए हुआ कहा कि तू पूर्व जन्म में निषाद की स्त्री थी और अति पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति ने चोरी की जिसके बाद तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ लिया और जेल में कैद कर दिया। उन लोगों ने तुझे और तेरे पति को भोजन भी नहीं दिया। उस समय नवरात्र चल रहे थे। इस तरह से नवरात्र के दिनों में न तो तुमने कुछ खाया और न ही जल पिया। इस प्रकार तुम्हारा नौ दिन का व्रत हो गया। हे ब्राह्मणी! उन दिनों के व्रत के प्रभाव से ही मैं प्रसन्न होकर तुझे मनोवांछित वर देती हूं, तुम्हारी जो इच्छा हो सो मांगो।
तब कन्या ने माता से अपने पति का कोढ़ रोग दूर करने की प्रार्थना की। देवी ने कहा- उन दिनों तुमने जो व्रत किया था उस व्रत का एक दिन का पुण्य अपने पति का अर्पण कर दो इससे तुम्हारा पति कोढ़ मुक्त हो जाएगा। लड़की ने ठीक वैसे ही किया जिसकी वजह से उसका पति बिल्कुल ठीक हो गया। वह ब्राह्मणी पति को ठीक होते देख देवी की स्तुति करने लगी- हे दुर्गे! आप दुर्गति को दूर करने वाली, तीनों लोकों का सन्ताप हरने वालीं, मनोवांछित वर देने वाली और दुष्टों का नाश करने वाली जगत माता हो। हे अम्बे! मेरे पिता ने मुझे कुष्टी मनुष्य के साथ विवाह कर घर से निकाल दिया था। मैं तभी से जंगल में भटक रही हूं, आपने मेरा इस विपदा से उद्धार किया है, हे देवी। आपको प्रणाम करती हूं। मेरी रक्षा करो।
उस ब्राह्मणी की ऐसी स्तुति सुन देवी ने ब्राह्मणी से कहा- तेरे उदालय नामक अति बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान पुत्र शीघ्र उत्पन्न होगा। देवी ने फिर से ब्राह्मणी से कुछ मांगने के लिए कहा। सुमति ने कहा कि हे भगवती दुर्गे! कृपा कर मुझे नवरात्र व्रत की विधि और उसके फल का विस्तार से वर्णन करें।
तब माता दुर्गा कहती हैं कि आश्विन महीने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर नौ दिन तक विधिपूर्वक व्रत करना चाहिए। यदि दिन भर व्रत न कर सकें तो एक समय भोजन करके भी व्रत किया जा सकता है। नवरात्रि के पहले दिन व्रत का संकल्प लिया जाता है और शुभ मुहूर्त में घट स्थापना की जाती है और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सींचना होता है। महाकाली, महालक्ष्मी और सरस्वती देवी की मूर्तियां स्थापित कर उनकी नौ दिन तक पूजा करें और पुष्पों से विधिपूर्वक अर्घ्य दें। फिर नवें दिन विधि-विधान हवन करें। इससे मनोवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है। इस विधि के अनुसार जो व्यक्ति व्रत करता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
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