कुर्मी नेताओं के बीच चल रहा है शह-मात का खेल, सभी राजनीतिक दलों ने पटेल प्रत्याशियों पर ही जताया भरोसा आखिर किसका....
रोहनिया सीट 2012 में अस्तित्व में आई। उस दौरान अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल बसपा के रमाकांत सिंह मिंटू को हराकर विधायक चुनी गईं। अध्यात्म और सांस्कृतिक नगरी काशी में रोहनिया सीट जीतने के लिए पटेल नेताओं में सियासी जंग चल रही है। कभी अपना दल (एस), तो कभी सपा और पिछले चुनाव में भाजपा के हाथ लगी यह सीट इस बार किसके खाते में जाएगी, यह पटेल मतदाताओं का रुख ही तय करेगा। इस बार सभी प्रमुख दलों ने पटेल प्रत्याशियों पर दांव लगा दिये है 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा-अपना दल (एस) ने हाथ मिलाया तो अनुप्रिया मिर्जापुर से सांसद चुन ली गईं। अनुप्रिया के जाने के बाद खाली हुई सीट पर उप चुनाव में सपा के महेंद्र सिंह पटेल ने जीत दर्ज की। 2017 के विधानसभा चुनाव में समीकरण बदले और अनुप्रिया की पार्टी अपना दल (एस) से गठबंधन का नतीजा रहा कि भाजपा ने सुरेंद्र नारायण सिंह पर दांव लगाया और पहली बार रोहनिया में भाजपा का खाता खुला। हालांकि, इस बार भाजपा-अपना दल (एस) गठबंधन के संयुक्त प्रत्याशी डॉ. सुनील पटेल को मौका दिया गया है। कांग्रेस ने राजेश्वर पटेल, सपा-अपना दल (कमेरावादी) गठबंधन ने अभय पटेल और बसपा ने अरुण सिंह पटेल पर दांव लगाया है। 2012 और 2014 में पटेल मतदाताओं ने जिसे चाहा, वो विधायक चुना गया। 2017 के चुनाव में सुरेंद्र नारायण सिंह की जीत इसलिए हुई, क्योंकि मिर्जापुर सांसद अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल (एस) का समर्थन भाजपा को मिला था।पटेल 1.47 लाख सवर्ण 80 हजार यादव 45 हजार
दलित 30 हजार है
2017 का चुनाव परिणाम
सुरेंद्र नारायण सिंह, भाजपा 1,19,885
महेंद्र सिंह पटेल सपा 62,332
प्रमोद कुमार सिंह बसपा 30,531मत पाए थे ।।
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