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भारत में बढ़ रही है मानसिक रोगियों की संख्या, मानसिक रोगियों की इतनी बड़ी संख्या, युवाओं की मौत की बड़ी वजह -डॉ हृदयेश कुमार

भारत में बढ़ रही है मानसिक रोगियों की संख्या मानसिक रोगियों की इतनी बड़ी संख्या के बावजूद भी अब तक भारत में इसे एक रोग के रूप में पहचान नहीं मिल पाई है ये बहुत ही गंभीर विषय है डॉ हृदयेश कुमार, बतादें कि,अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट के राष्टिय अध्यक्ष डॉ एम पी सिह के अथक प्रयासों से एक वर्ष के शोध मे सामने आया  है कि भारत में बढ़ रही है मानसिक रोगियों की संख्या मानसिक रोगियों की इतनी बड़ी संख्या के बावजूद भी अब तक भारत में इसे एक रोग के रूप में पहचान नहीं मिल पाई है, आज भी यहाँ मानसिक स्वास्थ्य की पूर्णत उपेक्षा की जाती है और इसे काल्पनिक माना जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, तकरीबन 7.5 प्रतिशत भारतीय किसी-न-किसी रूप में मानसिक विकार से ग्रस्त हैं। साथ ही WHO के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2020 तक भारत की लगभग 20 प्रतिशत आबादी मानसिक रोगों से पीड़ित होगी। मानसिक रोगियों की इतनी बड़ी संख्या के More 🌀read 👇 विज्ञापन बावजूद भी अब तक भारत में इसे एक रोग के रूप में पहचान नहीं मिल पाई है,  जबकि सच्चाई यह है कि जिस प्रकार शारीरिक रोग हमारे लिये हानिकारक हो सकते हैं उसी प्रकार मानसिक रोग भी हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। २।  मानसिक स्वास्थ्य में हमारा भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कल्याण (social welfare) शामिल होता है। यह हमारे सोचने, समझने, महसूस करने और कार्य करने की क्षमता को प्रभावित करता है।गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) (WHO) अपनी स्वास्थ्य की परिभाषा में शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी शामिल करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वर्ष 2020 तक अवसाद (Depression) दुनिया भर में दूसरी सबसे बड़ी समस्या होगी।कई शोधों में यह सिद्ध किया जा चुका है कि अवसाद, ह्रदय संबंधी रोगों का मुख्य कारण ३ है।मानसिक बीमारी (Mental diseases) कई सामाजिक समस्याओं जैसे- बेरोज़गारी, गरीबी और नशाखोरी आदि को जन्म देती है। WHO (WHO) के अनुसार, भारत में मानसिक रोगों से पीड़ित लोगों की सबसे अधिक संख्या मौजूद है।आँकड़े बताते हैं कि भारत में 15-29 वर्ष की आयु वर्ग के लोगों की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण आत्महत्या है।उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि भारत एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य महामारी की ओर बढ़ रहा है (mental health epidemic)। ४ भारत (India) में मानसिक स्वास्थ्यकर्मियों की कमी भी एक महत्त्वपूर्ण विषय है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वर्ष 2011 में भारत में मानसिक स्वास्थ्य विकार से पीड़ित प्रत्येक 100,000 रोगियों के लिये 0.301 मनोचिकित्सक और 0.07 मनोवैज्ञानिक थे। साथ ही वर्ष 2011 की जनगणना आँकड़ों से पता चलता है कि मानसिक रोगों से ग्रसित तकरीबन 78.62 फीसदी लोग बेरोज़गार हैं। मानसिक विकारों के संबंध में जागरूकता की कमी भी भारत के समक्ष मौजूद एक ५ बड़ी चुनौती है। अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट के संस्थापक  डॉ हृदयेश कुमार ने चिन्ता जाहिर करते हुए कहा कि भारत देश में जागरूकता की कमी और अज्ञानता के कारण लोगों द्वारा किसी भी प्रकार के मानसिक स्वास्थ्य विकार से पीड़ित व्यक्ति को ‘पागल’ ही माना जाता है एवं उसके साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध जानवरों जैसा बर्ताव किया जाता है।भारत में मानसिक रूप से बीमार लोगों के पास या तो देखभाल की आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं और यदि सुविधाएँ हैं भी तो उनकी गुणवत्ता अच्छी नहीं है। आँकड़े दर्शाते हैं कि भारत में महिलाओं की आत्महत्या दर (suicide rate) पुरुषों से काफी अधिक है। जिसका मूल घरेलू हिंसा, छोटी उम्र में शादी, युवा मातृत्व और अन्य लोगों पर आर्थिक विज्ञापन
निर्भरता आदि को माना जाता है। महिलाएँ मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से पुरुषों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होती हैं। परंतु हमारे समाज में यह मुद्दा इस कदर सामान्य हो गया है कि लोगों द्वारा इस पर ध्यान ही नहीं दिया जाता। भारत में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकारों से जुड़ी सामाजिक भ्रांतियाँ भी एक बड़ी चुनौती है। उदाहरण के लिये भारत में वर्ष 2017 तक आत्महत्या को एक अपराध माना जाता था और IPC के तहत इसके लिये अधिकतम 1 वर्ष के कारावास का प्रावधान किया गया था। जबकि कई मनोवैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि अवसाद, तनाव और चिंता
आत्महत्या के पीछे कुछ प्रमुख कारण हो सकते हैं। ध्यातव्य है कि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को संबोधित करने के लिये भी भारत के पास आवश्यक क्षमताओं की कमी है। आँकड़े बताते हैं कि वर्ष 2017 में भारत की विशाल जनसंख्या के लिये मात्र 5,000 मनोचिकित्सक (psychiatrists) और 2,000 से भी कम ​​मनोवैज्ञानिक (psychologists) मौजूद थे। मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को ठीक ढंग से संबोधित न किये जाने के कारण अर्थव्यवस्था
को भी काफी नुकसान का सामना करना पड़ता है। इससे न केवल देश की मानव पूंजी को नुकसान होता है बल्कि प्रभावित व्यक्ति की आर्थिक स्थिति भी खराब हो जाती है, क्योंकि इस रोग के इलाज की जो भी सुविधाएँ उपलब्ध हैं वे अपेक्षाकृत काफी महँगी हैं। WHO के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य (mental health) विकारों का सर्वाधिक प्रभाव युवाओं पर पड़ता है और चूँकि भारत की अधिकांश जनसंख्या युवा है इसलिये यह एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आता है।यदि कोई व्यक्ति एक बार किसी मानसिक रोग से ग्रसित हो जाता है तो जीवन भर उसे इसी तमगे के साथ जीना पड़ता है, चाहे वह उस रोग से मुक्ति पा ले। आज भी भारत में इस प्रकार के लोगों के लिये समाज की मुख्य धारा से जुड़ना काफी चुनौतीपूर्ण होता है। मानसिक विकारों (mental disorders) और लक्षणों के संबंध में जागरूकता की कमी के कारण अक्सर रोगी और समाज के अन्य लोगों के बीच एक अंतर उत्पन्न हो जाता है और रोगी को सामाजिक अलगाव का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण उसकी स्थिति और खराब हो सकती है।
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