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चंद्रयान-3 की सफलता के पीछे पूर्वांचल के दो युवा वैज्ञानिक असाधारण है दोनों की कहानी

मिर्जापुर/गाजीपुर। वर्षों से जिस पल का पूरी दुनिया को इंतजार था, वह आखिरकार आ ही गया। भारत का मून मिशन चंद्रयान-3 बुधवार शाम छह बजकर चार मिनट पर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंच गया। इसी के साथ भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर कामयाब लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। इसके अलावा, चांद पर उतरने वाला भारत का चौथा देश है। चांद की सतह को छूने वाले चंद्रयान-3 की सफलता में पूर्वांचल के दो युवा वैज्ञानिक भी भागीदार रहे हैं। गाजीपुर जिले के रेवतीपुर निवासी कमलेश शर्मा और मिर्जापुर के युवा वैज्ञानिक आलोक कुमार पांडेय चंद्रयान-3 की टीम का हिस्सा हैं। मिशन की सफलता के बाद दोनों खासे उत्साहित हैं। उनका कहना है कि यह गौरव के क्षण है। चंद्रयान-3 चंद्रमा की धरती पर उतारने के साथ ही सिग्नल के माध्यम से संपर्क स्थापित करने की जिम्मेदारी आलोक पर ही थी। लिहाजा दिनभर उनके घर में पूजा-पाठ होती रही।
माता-पिता समेत अन्य परिजनों ने मां विंध्यवासिनी की पूजा कर चंद्रयान की लैंडिंग के लिए आशीर्वाद मांगा था। बुधवार शाम जैसे ही चंद्रयान-3 ने सफलतापूर्वक लैंडिंग की तो वैज्ञानिकों के घरों में जश्न शुरू हो गया। माता-पिता की आंखों से खुशी के आंसू निकल आए। 14 जुलाई को इसरो ने चंद्रयान-3 को लॉन्च किया था, जिसके बाद यह पृथ्वी और चंद्रमा के चक्कर लगाता हुआ बुधवार को चांद की सतह पर लैंड कर गया।
अनेक सैटेलाइट लांचिंग मिशन में शामिल रहे कमलेश शर्मा: इसरो में वैज्ञानिक कमलेश शर्मा के पैतृक गांव रेवतीपुर सहित पूरे इलाके में बुधवार शाम चंद्रयान-3 की चांद के सतह पर सफल लैंडिंग होने पर जश्न का माहौल है। सुबह से ही लोग जगह-जगह हवन पूजन, वैज्ञानिक की फोटो लेकर इसके सफल लैंडिंग की कामना कर रहे थे। वैज्ञानिक कमलेश शर्मा इस मिशन के अन्य वैज्ञानिकों की टीम के साथ जुड़े हैं। इसके पहले 2014 में मिशन मंगलयान में चीफ कंट्रोलर की भूमिका निभा चुके हैं। जबकि कुछ वर्ष पहले मिशन चंद्रयान- 2 के लांचिंग टीम में भी रह गांव और जिले का नाम रोशन कर चुके हैं। 15 सितंबर 1986 को जन्मे कमलेश कुमार शर्मा की प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा गांव पर जबकि हाईस्कूल और इंटरमीडिएट तक की शिक्षा गाजीपुर जिले से ही हुई।
इसके बाद वैज्ञानिक बनने की इच्छा पाले कमलेश शर्मा ने लखनऊ यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन और गणित में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। वर्ष 2008 में परास्नातक में लखनऊ विश्वविद्यालय के इतिहास में सर्वाधिक अंक प्राप्त करके रिकॉर्ड 10 गोल्ड मेडल प्राप्त किए। इसी दौरान नेट और गेट की परीक्षा भी पास की। वर्ष 2010 में मैथमैटिक्स एक्सपर्ट का इसरो ने एक स्पेशल रिक्रूटमेंट किया। इसमें पूरे देश से 12 लोगों का चयन हुआ। इसमें कमलेश भी शामिल थे। इसी के बाद उन्होंने 12 अप्रैल 2010 को इसरो ज्वाइन किया था। वैज्ञानिक कमलेश शर्मा ने देश के लिए अनेक सैटेलाइट लांचिंग मिशन में भाग लिया। इनमें मार्स आर्बिटर मिशन (मंगलयान), कार्टाेसैट-1, ओशनसैट-2, हैमसैट, कार्टाेसैट-2ए, इंडिया और फ्रांस के ज्वाइंट वेंचर सेटेलाइट, मेघा ट्रोपिक-1 सेटेलाइट के सफल प्रक्षेपण अहम भूमिका रही है।
तीन दिनों तक नहीं लौटे घर आलोक पांडेय: चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर चंद्रयान 3 के लैंडिंग होते ही भारत ने इतिहास रच दिया और एक नए युग की शुरुआत हो गई। इस मिशन में मिर्जापुर के युवा वैज्ञानिक आलोक कुमार पांडेय भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। आलोक और उनके साथियों ने लैंडिंग और कम्यूनिकेशन की जिम्मेदारी संभाली। पिता संतोष पांडेय ने पुत्र आलोक से फोन पर हुई वार्ता के बारे में जानकारी देने के दौरान बताया कि मिशन के शत प्रतिशत सफल होने के लिए तीन दिनों से लांचिंग सेंटर में ही काम करते रहे, घर नहीं लौटे। सेना से सेवानिवृत्त संतोष पांडेय ने बताया कि बुधवार की सुबह बेटे का फोन आया। उसने मां विंध्यवासिनी को प्रणाम करने के बाद हमसे और माता से आशीर्वाद मांगा। फिर दूसरे दिन बात करने की बात कहकर चला गया। उन्होंने कहा कि इस मिशन के सफल होने की उन्हें बहुत खुशी है। उन्होंने कहा कि जय विज्ञान, जय जवान, जय किसान। आलोक कुमार पांडेय इसरो के वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं। इनके पिता संतोष कुमार पांडेय मार्काेस कमांडो रह चुके हैं। आलोक मार्स मिशन 2014 में महत्वपूर्ण भूमिका के लिए उत्कृष्ट वैज्ञानिक पुरस्कार पा चुके हैं। इसी प्रकार चंद्रयान दो की लांचिंग में महत्वपूर्ण भी निभा चुके हैं। इसके साथ ही कई वैज्ञानिक मिशन में अपना सहयोग दे चुके हैं। उनकी टीम पिछले कई महीने से दिन रात इस मिशन में लगी हुई थी। मिशन की सफलता के बाद से ही आलोक के घर बधाई देने वालों का तांता लगा रहा। लोगों ने उनके पिता संतोष पांडेय को मिठाई खिलाकर उन्हें बधाई दी। हर कोई मिर्जापुर के लाल आलोक की सफलता पर गर्व से इतराता नजर आया।


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