डीजे साउण्ड के दुष्प्रभाव से बढ़ रही है मरीजों की संख्या-डॉ निर्मल रंजन
•मांगलिक कार्यक्रमों पर शहनाई की धुन के बजाए डीजे का बढ़ा रिवाज।
•डीजे की कर्कश आवाज से लोगों के बीमार होने की बढ़ रही सम्भावना।
आजमगढ़, मण्डलीय जिला चिकित्सालय में ईएनटी सर्जन डॉ. निर्मल रंजन ने बताया कि इस समय डीजे के साउण्ड से प्रभावित मरीजों की संख्या बढ़ रही है। डॉ. निर्मल रंजन ने बताया कि अगर 70 डेसीबल से ऊपर की आवाज 24 घण्टे कानों में जाए तो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हो सकती है। वहीं अगर 85 डेसीबल की आवाज एक घण्टे सुनना खतरनाक, इसलिए घण्टो लगभग 120 डेसीबल की डीजे की आवाज कानों में जाना काफी खतरनाक हो रहा है। इस तरह की समस्या को लेकर ओपीडी में प्रतिदिन मरीजों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है।
शहनाई की मधुर धुन में सात फेरों के साथ जन्म-जन्मांतर साथ रहने की कसम निभाने की रश्मों के बीच कभी वैण्ड बाजों और शहनाई की धुन लोगों के कामों को कर्ण प्रिय बनाने के साथ शादी विवाह, तिलक व अन्य मांगलिक रश्मों को मधुर बनाते थे लेकिन पिछले कुछ वर्षों से शादी विवाह, तिलक व अन्य मांगलिक कार्यक्रमों पर वैण्ड बाजा व शहनाई की मधुर धुने यदा-कदा ही सुनाई देती हैं। अब उसकी जगह नए दौर में डीजे की कर्कश धुन ने जगह बना लिया है। इन कर्कश धुनो के बीच मांगलिक कार्यक्रमों के बीच उच्चारित होने वाले मंत्र लोगों के कानों में पहुंचने के बजाए कर्कश धुन में खो जाते है। इसके अलावा डीजे की कर्कश धुन से सिर्फ आस-पड़ोस ही नहीं बल्कि मांगलिक कार्यक्रम में शामल लोगों को भी परेशानियां महसूस होती हैं। डीजे की धुन से छोटे बच्चों, गर्भवती महिलाएं, हृदय रोग से पीड़ित लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। डीजे के कानफोडू शोर का असर मांगलिक कार्यक्रम में शामिल लोगों पर कुछ इस तरह दिखाई देता है कि डीजे की कर्कश धुन पर थिरकन वाले तो फिर थिरकते रहते हैं लेकिन देखने वाले दूर खड़े होकर डीजे की कानफोडू आवाज से बचने की कोशिश करते दिखाई देते हैं। डीजे से निकलने वाली धुने कभी-कभी 120 डेसीबल तक पहुंच जाती है जबकि इंसान को 80 डेसीबल आवाज सहन करने की क्षमता होती है। डीजे से निकलने वाली धुनें मस्तिष्क की नशों के साथ हृदय को प्रभावित करती हैं। गाड़ियों पर लगने वाले हार्न की आवाज में अगर 60 डेसीबल से ज्यादा होतो 1000 निर्धारित से ज्यादा माना जाता है लेकिन वहीं पर डीजे से निकलने वाली कर्कश धुन 120 डेसीबल तक पहुंच जाती है। वैसे तो मनुष्यों को सुनने की क्षमता 120 डेसीबल तक होती है लेकिन 80 डेसीबल से अधिक आवाजें मनुष्य को बीमार करने वाली मानी जाती हैं। शादी विवाह जैसे मांगलिक कार्यक्रमों में बैण्ड बाजा, शहनाई की मधुर धुन की बजाए डीजे की करकस आवाज के प्रति लोगों को लगाव कहीं न कहीं उनके जीवन के लिए हानिकारक साबित हो रहा है।
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