दुर्वासा धाम मेला शुक्रवार को पौराणिक कथाओ में है विशेष महत्व
जीजीएस न्यूज 24। आजमगढ़ प्राचीन समय की बात है। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में तमसा नदी के किनारे स्थित एक छोटे से गांव में ऋषि दुर्वासा का आश्रम था। ऋषि दुर्वासा को उनके क्रोध और तप के लिए जाना जाता था। उनकी साधना और तपस्या की महिमा इतनी थी कि देवता भी उनसे भयभीत रहते थे। ऋषि दुर्वासा का आशीर्वाद और श्राप दोनों ही अत्यंत प्रभावी माने जाते थे।
कहते हैं कि एक बार भगवान विष्णु ने दुर्वासा ऋषि की परीक्षा लेने के उद्देश्य से एक लीला रची। उन्होंने एक सुंदर पुष्पमाला बनवाई और उसे देवराज इंद्र को भेंट की। इंद्र ने उस माला को आदरपूर्वक लिया, परन्तु उसे अपने ऐरावत हाथी की सूंड में रख दिया। ऐरावत ने उस माला को जमीन पर गिरा दिया, और इससे ऋषि दुर्वासा नाराज हो गए। उन्होंने इंद्र को श्राप दे दिया कि उनकी शक्ति और ऐश्वर्य का विनाश होगा।
इस श्राप का प्रभाव इतना बड़ा था कि इंद्र का वैभव और देवताओं का तेज धीरे-धीरे क्षीण होने लगा। देवता संकट में पड़ गए और उन्हें राक्षसों के सामने पराजय का सामना करना पड़ा। तब देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। विष्णु जी ने देवताओं को समुद्र मंथन करने का परामर्श दिया, जिससे अमृत प्रकट होगा और उसे पीने से उनकी शक्ति पुनः प्राप्त हो जाएगी। इसी घटना से जुड़ी हुई कई कहानियाँ प्रचलित हैं जो दुर्वासा ऋषि की महिमा को दर्शाती हैं।
वर्षों बाद, उस स्थान पर कुम्भ तो आश्रम के स्थान पर "दुर्वासा धाम" के नाम से विशाल मेला लगने लगा। इस मेले में दूर-दूर से भक्तगण आते हैं और ऋषि दुर्वासा की पूजा-अर्चना करते हैं। लोग मानते हैं कि यहाँ आने से उनकी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और ऋषि दुर्वासा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह मेला हर वर्ष कार्तिक पुर्णिमा को आयोजित होता है, जिसमें श्रद्धालु बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। तमसा नदी में स्नान, पूजा-पाठ और भंडारे का आयोजन भी यहाँ किया जाता है।
आज भी दुर्वासा धाम मेला भारतीय संस्कृति, आस्था और परंपराओं का प्रतीक है। यह मेला न केवल धार्मिक महत्त्व रखता है, बल्कि लोगों के मन में ऋषि दुर्वासा की अनोखी शक्ति और उनकी महिमा की यादें भी ताजा करता है।
यह मेला इस बार शुक्रवार से शुरू होगा और विशाल रूप में दो दिनों तक विशेष रूप में रहेगा।
Leave a comment