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59 साल बाद एक बार फिर बेशकीमती मूर्ति की चोरी

आजमगढ़। अजमतगढ़ कस्बा स्थित सुप्रसिद्ध रामवाटिका परिसर में विराजमान राधा-कृष्ण मंदिर में 59 वर्ष पूर्व भी इन्हीं बेशकीमती मूर्तियों व स्वर्ण निर्मित झूले की चोरी हुई थी। बताते हैं कि वर्ष 1962 में चोर मंदिर में स्थापित की गई राधा-कृष्ण की मूर्ति व स्वर्ण निर्मित झूले के चार स्तंभ चुरा ले गए थे। उस दौरान खोजी कुतिया की मदद से कस्बे में स्थित पोखरे से स्वर्ण निर्मित तीन स्तंभ की बरामदगी की गई। साथ ही चोरी गई राधा-कृष्ण की बेशकीमती प्रतिमाएं रौनापार क्षेत्र से बरामद की गई थीं। उस समय मंदिर के अधिष्ठाता परिवार से जुड़े इंद्रभूषण गुप्ता बरामद की गई मूर्तियों को वाराणसी स्थित अपने आवास पर ले गए। तभी से यह मूर्तियां वहीं रखी गई थीं। चार-पांच वर्ष पूर्व उनके परिजनों ने खानदान के अजमतगढ़ निवासी गोपाल अग्रवाल को प्रतिमाओं को सौंप दिया। उन्होंने मंदिर में प्रतिमाओं को स्थापित करने के बाद सुरक्षा घेरे का मजबूत निर्माण कराया था। व्यवसायी परिवार के लोग ही मंदिर में पूजा-पाठ करते थे। एक वर्ष पूर्व मंदिर पर बतौर पुजारी रहे गुलाब नामक व्यक्ति को सेवामुक्त कर दिया गया। तत्पश्चात सुरेंद्र मौर्य को मंदिर के देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस वर्ष जन्माष्टमी के अवसर पर मंदिर को आम जनमानस के दर्शनार्थ खोला गया था। बताते चलें कि अजमतगढ़ कस्बे में स्थित पक्की बावली के किनारे स्थित काली मंदिर में भी प्रतिमा चोरी का प्रयास वर्ष 1992 में किया गया था। इस दौरान चोरों ने मंदिर के पुजारी चंदर निषाद की हत्या कर दी थी। इस घटना के उपरांत लोगों के आक्रोश को शांत करने के लिए काली मंदिर के समीप पुलिस चैकी की स्थापना की गई। गुरुवार की रात करोड़ों कीमत की बेशकीमती मूर्तियों के चोरी की घटना ने पूर्व में हुए इन दोनों घटनाओं की यादें ताजा कर दी है।


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