नागार्जुन की कविताओं में गंवई मिट्टी की सुगंध है - डॉ.अमरजीत राम
- राणा प्रताप पीजी कालेज की पुस्तक प्रदर्शनी में हुई संगोष्ठी
सुलतानपुर। ' नागार्जुन की कविताओं में किसानी चेतना और गंवई मिट्टी की सुगंध है।नागार्जुन की कविताओं में उनका समय तो बोलता ही है साथ ही वह आज के समय से भी जुड़ता है।' यह बातें इलाहाबाद विश्वविद्यालय के ईश्वर शरण डिग्री कालेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.अमरजीत राम ने कहीं।
वे राणा प्रताप स्नातकोत्तर महाविद्यालय में चल रही वाणी प्रकाशन समूह की छ दिवसीय पुस्तक प्रदर्शनी के दूसरे दिन आयोजित संगोष्ठी को बतौर मुख्य वक्ता सम्बोधित कर रहे थे।
हिन्दी विभाग द्वारा जनकवि नागार्जुन की प्रांसगिकता विषय पर आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए साहित्यिक पत्रिका अभिदेशक के सम्पादक डॉ. ओंकार नाथ द्विवेदी ने कहा कि नागार्जुन प्रतिरोध के कवि हैं। उनका विरोध हमेशा वैचारिक विरोध रहा । नागार्जुन का व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों आज प्रासंगिक हैं।
स्वागत व विषय प्रवर्तन करते हुए विभागाध्यक्ष इन्द्रमणि कुमार ने कहा कि नागार्जुन जनता के कवि हैं उनकी कविता में हासिये के समाज की बात की गई है।
चर्चित युवा साहित्यकार ममता सिंह ने कहा कि साहित्य और जनजीवन दोनों आज विपरीत धारा में बह रहे हैं। आवश्यकता है कि हम अपने बच्चों को साहित्य ,संगीत और कला से जोड़ें।
संगोष्ठी का संचालन असिस्टेंट प्रोफेसर ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह 'रवि' व आभार ज्ञापन डॉ.विभा सिंह ने किया। इस अवसर पर डॉ.महमूद आलम , डॉ.नीतू सिंह, डॉ.बीना सिंह , डॉ.शिवभोले मिश्र ,प्रदर्शनी प्रभारी लोकेश श्रीवास्तव , विद्यार्थी व शिक्षकों समेत अनेक प्रमुख व्यक्ति मौजूद रहे ।
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