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आषाढ़ में बारिश की जगह आसमान से बरस रही आग नहीं दिख रही कहीं मेंढ़क मेंढकी की शादी,न पानी मे डुबाये जा रहे शिवलिंग ,काल कलौटी पीयर धोटी मेघा ---पानी दे आदि सारे टोटके फेल

मऊ। जब आषाढ़ में झमाझम बारिश से खेतों में हरियाली छा जाती थी, पशु पक्षी हरी घास और पानी के मजे ले रहे होते हैं ऐसे में किसानों से लेकर पशु पक्षियों के चेहरे खिले रहते थे, लेकिन वर्तमान आषाढ़ बीतने को है लेकिन आज भी बारिश की जगह आग उगल रहा है।जिससे लोग घरों में रहने को विवश है तो किसान के माथे पर अपनी खरीफ की फसल खासकर धान की फसल को लेकर पसीने की लंबी लकीरे खींच गई है।पहले जैसे तैसे धान की नर्सरी तो डाल ली लेकिन रोपाई कैसे करें,ये समझ मे नहीं आ रहा।कुछ सम्पन्न किसान पम्पिंगसेट आदि के जरिये रोपाई भी कर रहे है तो पानी के अभाव में धान सुख रहे है तो अधिकांश किसान बारिश के इंतजार में है। 
लेकिन आषाढ़ माह खत्म होने को है लेकिन बारिश होने का नाम नहीं ले रही है। बारिश नही होने से जहां तपन से जनता परेशान है वहीं पशु पक्षियों का भी बुरा हाल है। ताल तलैया सब जलविहीन है। गर्मी की तपन इतनी ज्यादा है कि पशुओं को पानी पीने तक की कोई ब्यवस्था नहीं है। नहरें भी सूखी पड़ी है।जैसे नदियों में पानी नही है। करोड़ो रूपये हर साल इनकी सफाई पर खर्च किये जाते है लेकिन इसका लाभ किसानों को लगभग किसी साल नहीं मिल पाता है। कहीं है भी तो लोग शुरू में ही खोल लेते है,मध्य या टेल तक पानी पहुंच ही नहीं पाता है। 
हालांकि पहले भी सूखे पड़े है बारिश समय से नहीं हुए है,तो लोग इसके तरह तरह के टोटके जैसे भगवान शंकर को पानी मे डुबाने, मेंढ़क मेंढकी की शादी, बच्चों को दरवाजे पर पानी कीचड़ में लौटने औरतों द्वारा मंगलगीत आदि गीत गाने जैसे टोटके किये जाते रहे है लेकिन अब वह भी कहीं नहीं देखने को मिल रहा है। हालांकि इस क्षेत्र के अन्य राज्यों में चारो तरफ़ पानी से हाहाकार मचा हुआ है लेकिन इधर उसी पानी का ऐसा अकाल पड़ा है। जिससे प्रचंड गर्मी तो है ही,धान की रोपाई के साथ खरीफ की फसल भी बुवाई नहीं कि जा सकती है। 
किसानों के सामने समस्या है कि अगर धान की रोपाई या बुवाई आदि नहीं करेंगे तो भूखमरी की स्थिति उतपन्न हो जाएगी। बारिश के न होने से मक्का, बाजरा,अरहर,तिल, गन्ना जैसी फसल न बोई जा सकती है और न ही जो है उसको बचाई जा सकती है। बारिश के नही होने से बिजली में भी भारी कटौती हो रही है जिससे आम लोगों का जनजीवन अस्त व्यस्त होने लगा है। विद्वानों की माने तो इसमें ग्लोबल वार्मिंग का जबरदस्त असर है। अगर यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में लोग बरसात के पानी के लिए तरस जायेगें।


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