हर्षा रिछारिया की ‘सनातन युवा जोड़ो पदयात्रा’ में शामिल हुई मुस्लिम लड़की
प्रयागराज महाकुंभ से चर्चा में आईं हर्षा रिछारिया ने सोमवार को वृंदावन से 'सनातन युवा जोड़ो पदयात्रा' की शुरुआत की. यह पदयात्रा 21 अप्रैल को संभल में संपन्न होगी, जिसका उद्देश्य युवाओं को नशे से दूर कर धर्म और जीवन मूल्यों की ओर प्रेरित करना है. इस सात दिवसीय यात्रा को लेकर धार्मिक श्रद्धा के साथ-साथ सामाजिक सुधार का भी संदेश दिया जा रहा है. इस यात्रा की खास बात यह रही कि इसमें मथुरा की एक मुस्लिम पृष्ठभूमि से आने वाली युवती ने भी हिस्सा लिया, जो हिजाब में पदयात्रा में शामिल हुईं. अलीशा नाम की इस युवती ने आठ महीने पहले एक हिंदू युवक से प्रेम विवाह किया था और अब वह अपने पति के साथ इस आध्यात्मिक यात्रा का हिस्सा बनकर आत्मिक मार्ग की ओर आगे बढ़ रही है.
मथुरा निवासी अलीशा ने बताया कि वह इस यात्रा से जुड़ने के लिए भीतर से प्रेरित हुईं. उनके अनुसार, उन्होंने हर्षा रिछारिया के पोस्टर देखे और महसूस किया कि यह केवल धर्म का नहीं, बल्कि एक आंतरिक चेतना का अनुभव है, जिसमें वह स्वयं को शामिल करना चाहती थीं. यह किसी मजबूरी या प्रचार का हिस्सा नहीं, बल्कि एक स्वैच्छिक आत्मिक प्रयास है.
सचिन से किया प्रेम विवाह अलीशा ने बताया कि उन्होंने आठ महीने पहले अपने प्रेमी सचिन से कोर्ट मैरिज की थी. दोनों पिछले छह वर्षों से एक-दूसरे से जुड़े थे, लेकिन सामाजिक और पारिवारिक दबाव के बावजूद उन्होंने अपने रिश्ते को स्वीकार किया और अब साथ में इस यात्रा का हिस्सा हैं. उनके अनुसार, उन्होंने यह निर्णय अपनी सोच और आत्मनिर्णय के आधार पर लिया, जो आज के दौर में एक महत्वपूर्ण सामाजिक विमर्श को जन्म देता है. प्रेमानंद महाराज से है प्रभावित अलीशा ने यह भी बताया कि उन्होंने अब हिंदू धर्म को अपनाया है, लेकिन यह निर्णय किसी धार्मिक बहस से अधिक उनकी आध्यात्मिक प्रेरणा से जुड़ा है. वह संत प्रेमानंद महाराज के प्रवचनों से प्रभावित हैं और उन्हें अपना मार्गदर्शक मानती हैं. जब उनसे पूछा गया कि वह हिजाब क्यों पहनती हैं, तो उन्होंने कहा कि यह एक पुरानी आदत है, जो धीरे-धीरे छूट जाएगी.
धर्म की सीमा में नहीं बंधती आध्यात्मिकता यह कहानी सिर्फ एक धर्म परिवर्तन की नहीं, बल्कि आत्म-खोज, प्रेम, और सामाजिक साहस की भी है. ‘सनातन युवा जोड़ो’ जैसी यात्राएं तभी सार्थक होंगी जब वे आस्था से जुड़ने की आज़ादी के साथ-साथ संवाद और समावेश को भी बढ़ावा दें. अलीशा की मौजूदगी इस यात्रा में एक प्रतीक बन गई है कि आध्यात्मिकता किसी धर्म की सीमा में नहीं बंधती, बल्कि वह व्यक्तिगत अनुभव और मार्गदर्शन से आकार लेती है.
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