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रूस और युक्रेन के मध्य आखिरकार शुरू हो गया युद्ध

रूस और युक्रेन के मध्य आखिरकार युद्ध शुरू हो गया। 
काफी दिनों से चेतावनी देते रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन के आदेश से रूसी सेना ने गुरुवार सुबह यूक्रेन में घुसपैठ कर दी।
       ये युद्ध क्यों हो रहा है, विवाद की वजह क्या इतनी बड़ी है कि देश महाविनाश के रास्ते पार चलने को तैयार हो गया?
   आखिर ऐसा क्या हुआ कि पुतिन ने सेना को युद्ध का आदेश दे दिया और अब दुनिया विश्वयुद्ध के मुहाने पर खड़े होने को तैयार है?

इस विवाद को जानने के पहले रूस के विषय में कुछ जानते हैं।

द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के साथ ही दुनिया दो गुटों में बंट गई थी।

दो महाशक्तियाँ विश्व पटल पर उभरी, जिसमें एक ओर अमेरिका तो दूसरी ओर सोवियत संघ।

वर्ष 1917 से पहले तक रशिया और यूक्रेन रूसी साम्राज्य का हिस्सा हुआ करते थे।

लेकिन 1917 में रूस की क्रांति के नायक व्लादीमीर लेनिन के बाद यह साम्राज्य बिखर गया और यूक्रेन ने खुद को एक स्वतंत्र देश घोषित कर दिया।

पर यूक्रेन बहुत समय तक स्वतंत्र नहीं रह सका मुश्किल से 3 साल भी युक्रेन आजाद नहीं रह पाया और वर्ष 1920 में सोवियत संघ में शामिल हो गया

लेकिन 25 दिसंबर 1991 को सोवियत संघ का विघटन हुआ और 15 नए देश बने।

ये 15 देश हैं- यूक्रेन, आर्मीनिया, अजरबैजान, बेलारूस, इस्टोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, कीर्गिस्तान, लातविया, लिथुआनिया, मालदोवा, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान।

इस तरह यूक्रेन को असल मायनों में आजादी वर्ष 1991 में ही मिली।

दोनों देशों के बीच लड़ाई का कारण 
इस विवाद का असली खलनायक है अमेरिका और इसी की शह पर यूक्रेन रूस को नज़रअंदाज़ कर से युद्ध करने को तैयार हो गया।
इन दोनों देशों के मध्य लड़ाई की वजह -

1991 में सोवियत संघ से जब यूक्रेन आजाद हुआ तो करीब 3 करोड़ रूसी लोग अपने मूल देश से बाहर हो गए थे। अब यूक्रेन में जनता दो भागों में बंटी है। यूक्रेन के राष्ट्रवादी लोग रूस की छाया से बाहर आने और पश्चिमी देशों का हिस्सा बनने की पैरवी करते हैं तो वहीं यूक्रेन के भीतर रूस से खुद को जोड़कर देखने वाले लोग इसके पक्ष में नजर नहीं आते हैं। अत: वहाँ की स्थिति और भी जटिल है।

2014 में रूस ने यूक्रेन का हिस्सा रहे क्रीमिया पर नियंत्रण कर लिया था। क्रीमिया वह प्रायद्वीप है जिसे सन् 1954 में सोवियत संघ ने यूक्रेन को तोहफे में दिया था। जब यूक्रेन सोवियत संघ से अलग हुआ तो कई बार क्रीमिया को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव भी पैदा हुआ।. इसी के बाद 2015 में फ्रांस और जर्मनी ने बेलारूस की राजधानी मिन्स्क में रूस और यूक्रेन के बीच शांति समझौता भी कराया था। इसके बाद स्थिति शांतिपूर्ण हो गई थी।

यूक्रेन जानता है कि वह कभी भी अपने बलबूते रूस का मुकाबला कर नहीं सकता और इसीलिए वह एक ऐसे सैन्य संगठन में शामिल होना चाहा, जो उसकी स्वतंत्रता को हर स्थिति में सुनिश्चित करें क्योंकि यूक्रेन के लोग आजाद रहना चाहते हैं। और नाटो जैसा अच्छा विकल्प यूक्रेन लिए इस समय कोई भी नही है।

सीधी सी बात है कि यूक्रेन रूस के दबाव से बाहर निकलने के लिए नाटो देशों के साथ शामिल होना चाहता है। लेकिन रूस को लगता है कि अगर उसका पड़ोसी देश यूक्रेन नाटो देश के साथ शामिल हो गया तो उसके सबसे बड़े प्रतिद्वंदी अमेरिका की सेना रूस की सीमा तक पहुँच जाएगी और यह रूस कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे खतरनाक साबित होगा।

नाटो देश मे कुल 30 देश हैं, जिनमे अमेरिका, ब्रिटेन कनाडा और फ्रांस जैसे देशों का सशक्त मिलिट्री ग्रुप है। ये देश रूस के सामने चुनौती खड़ी कर सकते है। रूस के पड़ोसी देश, एस्टोनिया, लातविया आदि देश, जो पहले सोवियत संघ जमाने में एक साथ हुआ करते थे, पहले ही नाटो में शामिल हो चुके हैं।

अगर यूक्रेन भी नाटो में शामिल हो गया तो रूस चारों तरफ से अपने शत्रु देशों से घिर जाएगा। इससे रूस पर अमेरिका का भी दबाव और बढ़ जाएगा। जिससे अमेरिका जब चाहे तब रूस को झुका सकता है।

नाटो देश रूस को अपना शत्रु मानते हैं। नाटो देश इस सिद्धांत को मानते हैं कि अगर उनके किसी नाटो मित्र देश पर कोई दूसरा देश हमला करता है तो यह हमला सभी नाटो देशों पर हुआ हमला माना जाएगा। और यह सारे देश मिलकर उस राष्ट्र के खिलाफ एक साथ लड़ेंगे।

रूसी क्रांति के नायक व्लादिमीर लेनिन ने एक बार कहा था कि यूक्रेन को खोना रूस के लिए एक शरीर से अपना सिर काट देने जैसा होगा। अगर यूक्रेन नाटो का सदस्य होता तो इन देशों को अपनी सेनाएँ यूक्रेन में भेजनी पड़ती और इसी वजह से रूस यूक्रेन को नाटो देश के साथ जाने का विरोध करता है। रूस की इस नाराजगी के बाद अमेरिका यूक्रेन के समर्थन में उतरकर सामने आ गया और उसने यूक्रेन को नाटो का ट्रेनिंग सेंटर के तौर पर इस्तेमाल करने की योजना बना डाली। इससे रूस की नाराजगी और अधिक बढ़ गई।
अमेरिका के समर्थन मिलने के बाद यूक्रेन नहीं माना और उसने डोनबास प्रांत के नागरिक आबादी पर आक्रमण कर दिया। माना जाता है कि इस डोनबास प्रांत में रूस समर्थक यूक्रेन के विरोधी अलगाववादी आबादी रहती है। यूक्रेन की इस कार्रवाई का नतीजा यह रहा कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका और पश्चिमी देशों की पाबंदियों की परवाह किए बिना यूक्रेन पर विशेष सैन्य कार्रवाई के तहत हमला कर दिया।


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