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शहीद दिवस क्यो मनाते हैं?बापू जी से कैसे सम्बंध, बापू जी के देश पर बड़े योग्यदान


भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सबसे प्रसिद्ध हस्ती महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी, 1948 को शाम की प्रार्थना के दौरान बिड़ला हाउस में गांधी स्मृति में नाथूराम गोडसे द्वारा की गई थी. उस समय वह 78 वर्ष के थे. इस दिन को शहीद दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. वह भारत को एक धर्मनिरपेक्ष और एक अहिंसक राष्ट्र के रूप में बनाए रखने के प्रबल समर्थक थे, जिसके कारण उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था. 23 मार्च को भी शहीद दिवस के रूप में चिह्नित किया जाता है, क्योंकि उस दिन भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी.

SHAHEED DIWAS 2022: शहीद दिवस कैसे मनाया जाता है?

शहीद दिवस के अवसर पर महात्मा गांधी की समाधि, राजघाट पर भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री एक साथ आते हैं. सभी गणमान्य व्यक्ति महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देते हैं और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनके बहादुर योगदान को याद करते हैं. देश के सशस्त्र बल के जवान और अंतर-सेवा आकस्मिक शहीदों को सम्मानजनक सलामी देते हैं. जगह पर एकत्रित लोग बापू और देश के अन्य शहीदों की याद में 2 मिनट का मौन रखते हैं.

SHAHEED DIWAS 2022: 30 जनवरी 1948 को हुई थी महात्मा गांधी की हत्या

30 जनवरी 1948 की शाम करीब 5.17 बजे महात्मा गांधी दिल्ली के बिड़ला भवनमें शाम की प्रार्थना के लिए जा रहे थे, तभी नाथूराम गोडसे ने पहले उनके पैर छुए, फिर अपनी सेमी ऑटोमैटिक पिस्टल से एक-एक कर तीन गोलियां उनके सीने में दाग दी.
कुछ यादें
महात्मा गांधी जिन का नाम लेते ही हमारा दिमाग अहिंसा की तस्वीर उकेरन  लगता है.जिन्हें हम 'बापू' के नाम से भी जानते हैं.जिन्हे भारत सरकार द्वारा राष्ट्रपिता की उपाधि से सम्मानित किया गया है. जिनके अथक प्रयासों से हमें  1746 से चली आ रही 200 सालों की अंग्रेजों की गुलामी से 15 Augest 1947 के दिन आजादी मिली.
 यूं तो हमें आजादी दिलाने में गांधी जी के अलावा अनेकों स्वतंत्रता सेनानियों का    महत्वपूर्ण योगदान रहा है. हमारे प्रिय स्वतंत्रता सेनानी सरदार भगत सिंह,            राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद, जिन्होंने भारत को स्वतंत्र कराने में अपने प्राणों की आहुति तक दे डाली. हमें आजादी दिलाने में इन महान क्रांतिवीरो का भी अहम् योगदान रहा है.
लेकिन महात्मा गांधी जी द्वारा चलाये गए अहिंसा के आंदोलनों ने अंग्रेजी हुकूमत की रीड तोड़ कर रख दी. क्योंकि हिंसात्मक आंदोलनों को तो अंग्रेजी सरकार हिंसा के दम पर तोड़ना जानती थी लेकिन जिन आंदोलनों की बुनियाद ही सत्य और अहिंसा पर टिकी हो उसके आगे अंग्रेजी हुकूमत भी बेबस नजर आती थी. यही अहम् कारण थे कि महात्मा गांधी के चलाये गए आंदोलन सफल रहे और तिथि 15 Augest 1947 को अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ा.
दोस्तों आज हम आपसे इन्हीं महान पुरुष के जीवन तथा इनके प्रमुख आंदोलनों की दिलचस्प जानकारी सांझा कर रहे हैं. इस जानकारी को पढ़कर आप इन्हें तथा इनके आंदोलनों को और गहराई से जान पाएंगे.
तो चलिए जानते हैं भारत के राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी अर्थात महात्मा गांधी के जीवन तथा उनके आंदोलन से जुड़ी दिलचस्प जानकारी.

पूरा नाम    –   मोहनदास करमचंद गांधी
जन्म          –  2 अक्टूबर 1869
जन्मस्थान  –  पोरबंदर (गुजरात)
पिता          –   करमचंद गाँधी
माता          –   पुतलीबाई
मृत्यु           –  30 जनवरी 1948

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर1869 के दिन गुजरात राज्य के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था. उनके पिता का नाम श्री करमचंद्र गांधी तथा माता का नाम पुतलीबाई था. महात्मा गांधी के पिता पोरबंदर के दीवान थे तथा उनकी माता पुतलीबाई ग्रहणी तथा धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी. महात्मा गांधी की माता पढ़ी-लिखी नहीं थी लेकिन वह धार्मिक विचारों का पालन पूरी लगन से करती थी इन्हीं धार्मिक विचारों, धार्मिक सोच का गांधी जी के जीवन पर अहम प्रभाव बचपन से ही शुरू हो गया था.
महात्मा गांधी का बचपन का नाम मोहनदास गांधी था.महात्मा गांधी का विवाह बाल अवस्था में ही हो गया था.उनके पिता करमचंद गांधी ने मात्र 13 वर्ष की आयु में महात्मा गांधी का विवाह कस्तूरबा माखन से कर दिया था. कस्तूरबा, गांधी जी से उम्र में 1 साल बड़ी थी.

सन् 1885 में गांधीजी के घर पुत्र का जन्म हुआ पर कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई. इसके कुछ समय बाद उनके पिता करमचंद गांधी भी चल बसे.
मोहनदास और कस्तूरबा गांधी के कुल 4 पुत्र हुए. जिनका नाम हीरालाल गांधी , मणिलाल गांधी, रामदास गांधी और देवदास गांधी था.


शिक्षा

गांधी जी की प्रारंभिक शिक्षा राजकोट से शुरू हुई. सन 1881 में उन्होंने हाई स्कूल में प्रवेश लिया तथा सन 1887 में गांधीजी ने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की.मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने भावनगर के सामलदास कॉलेज में प्रवेश लिया किंतु परिवार वालों के कहने पर उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए इंग्लैंड जाने का निर्णय लिया. इंग्लैंड में उन्होंने अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी की तथा सन् 1891 में वे बैरिस्ट्रर बनकर भारत लौटे.


गाँधी 24 साल की उम्र में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे. उन्होंने अपने जीवन के 21 साल दक्षिण अफ्रीका में बिताये. जहाँ उनके राजनैतिक विचार और नेतृत्व कौशल का विकास हुआ. वह प्रिटोरिया स्थित कुछ भारतीय व्यापारियों के न्यायिक सलाहकार के तौर पर वहां गए थे. दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी को अपमान का सामना करना पड़ा. गांधीजी को रेल द्वारा प्रीटोरिया की यात्रा करते समय अपमानजनक तरीके से ट्रेन से उतार फेंका गया. गाँधी जी का ये अपमान उनके काळा भारतीय होने के कारण हुआ था. दक्षिण अफ्रीका के गोरों ने अपनी अश्वेत नीति के तहत उनके साथ यह दुर्व्यवहार किया था.


गांधीजी का हुआ ये अपमान उनके सीने में घर कर गया. अपने साथ हुए इस अपमान का बदला लेने के लिए गाँधी जी ने भारतीयों के साथ मिलकर गोरी सरकार के विरुद्ध संघर्ष का संकल्प ले लिया. गाँधी जी ने यहां रह रहे प्रवासी भारतीयों के साथ मिलकर एक संगठन बनाया और सत्याग्रह छेड़ किया.


दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के सम्मान के लिए, भारतीयों के प्रबंधित स्थानों पर प्रवेश के लिए, महात्मा गांधी ने आवाज बुलंद की. दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के हितो की आवाज उठाते -२ गाँधी जी को भारत में ब्रिटिश सरकार की हुकूमत को लेकर विरोधी आभाष होने लगा. उन्हें भारतीयों का भविष्य ब्रिटिश सरकार की गुलामी में नजर आ रहा था. वे भारत के भविष्य को लेकर चिंतित थे.


वर्ष 1915 में गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौट आये. इस समय तक गांधी एक राष्ट्रवादी नेता और संयोजक के रूप में पहचान बना चुके थे. वह उदारवादी कांग्रेस नेता गोपाल कृष्ण गोखले के कहने पर भारत आये थे और शुरूआती दौर में गाँधी के विचार बहुत हद तक गोखले के विचारों से प्रभावित थे. प्रारंभ में गाँधी ने देश के विभिन्न भागों का दौरा किया और देश के राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों को समझने की कोशिश की.

गाँधी जी से जुड़े प्रमुख आंदोलन


चंपारण आंदोलन

गांधी जी द्वारा सन 1917 में चंपारण आंदोलन चलाया गया.यह आंदोलन बिहार के चंपारण जिले में चलाया गया था. चंपारण आंदोलन को चंपारण सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है. यह आंदोलन लैंडलॉर्ड द्वारा किसानों पर हो रहे अत्याचार के विरोध में चलाया गया था. लैंडलॉर्ड किसानों को नील की खेती करने के लिए मजबूर कर रहे थे और उन्हें एक निश्चित मूल्य पर बेचने के लिए विवश कर रहे थे. किसानों को लैंडलॉर्ड का किया यह अत्याचार रास नहीं आ रहा था. किसान इस से मुक्ति पाना चाहते थे तथा किसानों ने इस अत्याचार से बचने के लिए गांधी जी से मदद मांगी. गांधी जी चंपारण के हालात को देखने के लिए चंपारण गए. जहां हजारों की भीड़ ने गांधीजी को घेर लिया और किसानों ने अपनी सारी समस्याएं गांधी जी को बताई. गांधी जी के साथ इस जनसमूह को देखकर ब्रिटिश सरकार भी हरकत में आ गई और सरकार ने अपनी पुलिस के द्वारा गांधी जी को जिला छोड़ने का आदेश दिया. गांधी जी ने यह आदेश मानने से इनकार कर दिया इस पर पुलिस ने गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया. गांधी जी को अगले दिन कोर्ट में हाजिर होना था. लेकिन गांधीजी के हाजिर होने से पहले ही कोर्ट में हजारों किसानों की भीड़ जमा हो गई गांधी जी के समर्थन में नारे लगने लगे.तभी मैजिस्ट्रेट ने गांधीजी को बिना जमानत के छोड़ने का आदेश दे दिया लेकिन गांधीजी ने इस आदेश को नहीं माना और उन्होंने कानून के अनुसार सजा की मांग की.परन्तु  मजिस्ट्रेट ने फैसला स्थगित कर दिया और इसके बाद गांधी जी अपने कार्य पर निकल पड़े और चंपारण आंदोलन की शुरुआत हो गई. गांधी जी के आंदोलन में किसानों के साथ आम जनता ने भी साथ दिया तथा मजबूर होकर ब्रिटिश सरकार को एक कमेटी गठित करनी पड़ी तथा महात्मा गांधी को उस का सदस्य बनाया गया. गांधीजी ने उन सभी प्रस्ताव को स्तगित कर दिया जो किसानो के विरोध में थे. इस तरह गाँधी जी के भारत में चलाये गए प्रथम चम्पारण सत्याग्रह जीत हुई.


खेड़ा सत्याग्रह

सन 1918 में गुजरात के खेड़ा नामक गांव में बाढ़ आ गई तथा किसानों की फसल तबाह हो गई. जिससे किसान ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए जाने वाले टैक्स भरने में अक्षम हो गए. किसानों ने इस दुविधा से निकलने के लिए गांधीजी की सहायता मांगी तब गांधी जी ने किसानों को टैक्स में छूट दिलाने के लिए आंदोलन किया जिसे 'खेड़ा सत्याग्रह' के नाम से जाना जाता है इस आंदोलन में गांधी जी को किसानों के साथ जनता का भरपूर समर्थन मिला और आखिरकार मई 1918 में ब्रिटिश सरकार को अपने टैक्स संबंधी नियमों में संशोधन कर किसानों को राहत देने की घोषणा करनी पड़ी और इस तरह यह आंदोलन भी सफल हुआ.


असहयोग आंदोलन

असहयोग आंदोलन सितंबर 1920 में चलाया गया. इस आंदोलन को चलाने के पीछे कई अहम कारण थे. सन 1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा रौलट एक्ट पास किया गया जिसे भारतीय जनता ने 'काला कानून' की संज्ञा दी. रौलट एक्ट के विरोध में 13 अप्रैल 1919 को पंजाब के जलियांवाला बाग में एक सभा बुलाई गई जिसमें हजारों की भीड़ जुटी. वहां ब्रिटिश जनरल डायर भी अपनी टुकड़ी के साथ पहुंच गया और उसने निहत्थी जनता पर गोलियां चलाने का आदेश दे दिया. जिस कारण हजारों की संख्या में मासूम बच्चे, स्त्रियां, पुरुष मारे गए.

ब्रिटिश सरकार के इस दुस्साहस से ब्रिटिश सरकार चौतरफा विरोध में घिर गई.

तथा गांधीजी ने ब्रिटिश सरकार के विरोध में सितंबर 1920 में असहयोग आंदोलन की घोषणा कर दी. असहयोग आंदोलन 1920 से लेकर 1922 तक चला.1922 में चौरा चौरी कांड के कारण गांधी जी को असहयोग आंदोलन को वापस लेना पड़ा. अपने शुरुआती दौर में असहयोग आंदोलन चरम पर था तथा इसके अंतर्गत सरकारी पदों का, स्कूल का, सरकारी अदालतों का बहिष्कार करना, विदेशी वस्तुओं का परित्याग करना, शामिल था. लेकिन इस आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों द्वारा चोरा चोरी नामक स्थान पर हिंसा की घटना हो गई उनके द्वारा एक थानेदार और 21 सिपाहियों को जलाकर मार डाला गया. असहयोग आंदोलन गांधी जी के अहिंसा के रास्ते को छोड़ने लगा था इसी कारण सन 1922 को गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया.


नमक सत्याग्रह/ दांडी मार्च

ब्रिटिश सरकार द्वारा नमक बनाने पर लगाएं प्रतिबंध को तोड़ने के लिए महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया इस आंदोलन की शुरुआत 12 मार्च 1930 को हुई. इसके तहत गांधीजी ने दांडी मार्च निकाला.गांधी जी अपने 72 अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से पैदल चलकर 24 दिनों में 240 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर दांडी गांव समुन्दर तट पर पहुंचे.गांधीजी ने समुंदर के किनारे पहुंचकर नमक बनाकर ब्रिटिश सरकार के नमक कानून को तोड़ा. गांधी जी के नमक बनाने के बाद पूरे देश में नमक कानून को तोड़ा गया.

यही वह घटना थी, जिसके चलते महात्मा गाँधी दुनिया की नज़र में आए. इस यात्रा को यूरोप और अमेरिकी प्रेस ने व्यापक कवरेज दी.

यह पहली राष्ट्रवादी गतिविधि थी, जिसमें औरतों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. समाजवादी कार्यकर्ता कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने गाँधीजी को समझाया कि वे अपने आंदोलनों को पुरुषों तक ही सीमित न रखें. कमलादेवी खुद उन असंख्य औरतों में से एक थीं, जिन्होंने नमक या शराब क़ानूनों का उल्लंघन करते हुए सामूहिक गिरफ़्तारी दी थी.

नमक यात्रा के कारण ही अंग्रेज़ों को यह अहसास हो गया था कि अब उनका राज बहुत दिन तक नहीं टिक पायेगा और उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सा देना होगा.

गाँधी जी का किया यह आंदोलन भी सफल रहा.


भारत छोड़ो आंदोलन

भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत महात्मा गांधी जी द्वारा अगस्त 1942 में की गई थी. यह आंदोलन गांधी जी द्वारा चलाए गए आंदोलनों में तीसरा बड़ा आंदोलन था. यह आंदोलन अब तक के सभी आंदोलनों में सबसे अधिक प्रभावी रहा तथा इस आंदोलन से निपटने के लिए अंग्रेजी सरकार को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा. परंतु इसके संचालन में हुई गलतियों के कारण यह आंदोलन जल्दी ही धराशाही हो गया. इस अंदोलन को भारत में एक साथ शुरू नहीं किया गया था और यह यही अहम कारण रहा कि यह आंदोलन जल्दी ही धराशाही हुआ. इस आंदोलन के अंतर्गत भारतीयों को ऐसा लग रहा था कि अब हमें आजादी मिल ही जाएगी. उनकी इसी सोच के कारण आंदोलन कमजोर होना शुरू हो गया और जल्दी ही धराशाई हो गया. लेकिन इस आंदोलन ने ब्रिटिश हुकूमत को यह एहसास करा दिया था कि अब भारत में उनका शासन और नहीं चल सकता उन्हें आज नहीं तो कल भारत छोड़कर जाना ही होगा.

30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा गांधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी गयी.
गांधीजी के मुख से निकले आखिरी शब्द थे . हे राम, हे राम, हे राम

गाँधी जी ने अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में अहिंसा और सत्य का मार्ग अपनाया तथा देशवाशियो को भी इसी मार्ग पर चलने का आग्रह किया.
गाँधी जी के आदर्श वाक्य : बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो, बुरा मत कहो

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