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मानवता की रक्षा के लिए शंकराचार्य का दर्शन प्रासंगिक - प्रोफेसर राम किशोर शास्त्री


 - राणा प्रताप पीजी कालेज में हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी 
सुलतानपुर। ' मानवता की रक्षा के लिए आज शंकराचार्य का दर्शन प्रासंगिक है। जब हम सबमें एकत्व देखेंगे तो हिंसा नहीं होगी । शंकराचार्य का दर्शन समन्वयवादी है। व्यक्ति में ब्रह्म की अनुभूति कराना इस दर्शन की प्रमुख विशेषता है।भारतीय संस्कृति की रक्षा में जितना बड़ा योगदान शंकराचार्य का है उतना किसी अन्य आचार्य का नहीं। ' 
यह बातें इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रोफेसर राम किशोर शास्त्री ने कहीं। 
वह शनिवार को राणा प्रताप स्नातकोत्तर महाविद्यालय के क्षत्रिय भवन में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा संचालित भारतीय भाषा समिति के सहयोग से आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन व प्रथम तकनीकी सत्र को बतौर मुख्य वक्ता सम्बोधित कर रहे थे। 
' जगद्गुरु श्री शंकराचार्य : भाषा संस्कृति एवं राष्ट्रीय एकता ' विषय पर आयोजित इस संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए मुम्बई विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर रामजी तिवारी ने कहा कि शंकराचार्य का व्यक्तित्व असाधारण था । बचपन से ही उनके भीतर लोक कल्याण की प्रबल चेतना थी । उनका दर्शन मनुष्य को सहज और सरल बनाता है । 
शंकराचार्य द्वारा चारों कोनों पर स्थापित पीठें हमारी सांस्कृतिक चौकियां हैं ।  
विशिष्ट वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार कमल नयन पाण्डेय ने कहा आदि शंकराचार्य ने धर्म दर्शन और आध्यात्मिकता को जन सामान्य के लिए सरल बनाया। समूचे विश्व के लिए उनका संदेश महत्वपूर्ण है।उन्होने बताया कि भेद से मुक्ति तभी होगी जब हम अभेद की ओर बढ़ेंगे।शंकराचार्य का दर्शन कभी अंध भक्त नहीं बनाता वह तथ्य और तर्क को महत्व देता है। 
स्वागत प्राचार्य प्रोफेसर दिनेश कुमार त्रिपाठी ,आभार ज्ञापन प्रबंधक एडवोकेट बालचंद्र सिंह व संचालन उप प्राचार्य प्रोफेसर निशा सिंह ने किया। समन्वयक डॉ.अमित तिवारी ने संगोष्ठी के विषय व उद्देश्य के बारे में जानकारी दी। 
संगोष्ठी की शुरुआत में शृंगेरी शारदा पीठ के जगद्गुरु स्वामी भारती तीर्थ व भारतीय भाषा समिति के अध्यक्ष पद्मश्री चमूकृष्ण शास्त्री का वीडियो संदेश सुनाया गया। आयोजक मंडल ने मंचस्थ अतिथियों को अंगवस्त्र व पुष्पगुच्छ भेंट कर सम्मानित किया।
महाविद्यालय के संगोष्ठी कक्ष में सम्पन्न द्वितीय तकनीकी सत्र व समापन सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर राधेश्याम सिंह , सह अध्यक्षता प्रोफेसर एम पी सिंह ,संचालन डॉ अमित तिवारी व आभार ज्ञापन डॉ.इन्द्रमणि कुमार ने किया। इस सत्र को बतौर मुख्य वक्ता सम्बोधित करते हुए संत तुलसीदास पीजी कालेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ सतीश कुमार सिंह ने कहा कि शंकराचार्य ने भारत की राष्ट्रीय एकता को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

विशिष्ट वक्ता गनपत सहाय पीजी कालेज के दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ.अभिषेक कुमार ने बताया आद्य शंकराचार्य का मानना था कि आत्मा का निराकरण नहीं हो सकता। 
संगोष्ठी में अनेक महाविद्यालयों के शिक्षक , शोधार्थी व विद्यार्थी उपस्थित रहे।


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