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दो सूफी संतों की मजारों पर तीन दिवसीय उर्स 23 सितंबर से...

अतरौलिया आजमगढ़ । बूढ़नपुर तहसील अंतर्गत ग्राम पहाड़ी सरैया स्थित दो सूफी संतों की मजारों पर तीन दिवसीय उर्स 23 सितंबर से शुरू होगा। उर्स में जायरीनों के आने का सिलसिला शुरू हो गया है। भीड़ को देखते हुए पुलिस प्रशासन ने कड़े सुरक्षा प्रबंध किए हैं। मजार के गद्दी नशीं सैय्यद शाह हामिद हसन जीलानी व सैयद अशरफ जिलानी ने बताया कि 23 सितंबर दिन शुक्रवार को बाद नमाज मगरिब महफिले मिलाद शरीफ और लंगरे आम का प्रोग्राम होगा। तथा 24 सितंबर दिन शनिवार को सुबह 8:00 बजे आस्तान ए आलिया पर चादर पोशी,  कुल शरीफ के बाद जियारते खिरका शरीफ, मिलाद शरीफ के बाद नमाजे इंसान के बाद  जलसा व हाफिज व आलिम में पास उत्तीर्ण तालिबे इल्म छात्र बच्चों का दस्तारबन्दी होगा। तथा 25 सितंबर इतवार को सुबह बाद नमाज़ फज्र कुरआन ख्वानी के बाद 8:00 बजे चादर पोशी, मिलाद शरीफ के बाद तक्सीम लंगर का प्रोग्राम होगा। उर्स पर जायरीनों के आने का सिलसिला शुरू हो गया है।
 पहाड़ी सरैया में दो प्रसिद्ध सूफी मखदूम सैयद हाफिज शाह मोहम्मद तकी जिलानी व हजरत मौलाना सैयद मोहम्मद कासिम जिलानी की मजार है। मजार के संबंध में यहां के गद्दी नशीन सैयद हामिद हसन जिलानी ने बताया कि उनके बाबा हुजूर सैय्यद तकी  जीलानी जो बहुत ही परहेज़गार व सूफी थे। उनका इंतकाल 1950 में हो गया। उन्हें यही बगीचे में सुपुर्द ए खाक किया गया। और मजार के चारों तरफ चहारदीवारी बनाई गई। वहां एक बड़ा मदरसा और मस्जिद का निर्माण कराया गया। प्रत्येक गुरुवार को यहां मेला लगने लगा। उसके बाद उनके एकलौते पुत्र हजरत मौलाना सैयद मोहम्मद कासिम जिलानी का इंतकाल 18 जुलाई 2002 को हुआ। उन्हें भी मजार के पूररब में सुपुर्द ए  खाक किया गया। लोगों का मानना है कि यहां पर मांगी गई दुआ  कभी खाली नहीं जाती। 40 दिन के बाद गांव की एक पनवाड़ी की पुत्रवधू को कुछ भूत प्रेत बाधा की शंका हुई तो उसने मजार पर आकर मन्नत मांगी और वहां ठीक हो गई।यह मजार अतरौलिया-अतरैठ मार्ग पर 8किलोमीटर दूरी पर पहाड़ी सरैया गांव में स्थित है। इन मजारों पर लगने वाले सालाना उर्स में हिंदू- मुस्लिम दोनों समुदाय के लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है ।यहां पर वर्ष भर प्रत्येक गुरुवार को मेला लगता है। इस दिन विभिन्न रोगों एवं  भूत-प्रेत बाधाओं से पीड़ित ब्यक्ति आकर मत्था टेकते हैं। और अपनी मनोकामना पूरी होने पर मजार पर चादर चढ़ाते हैं। उर्स में भाग लेने के लिए स्थानीय लोगों के अलावा देश- प्रदेश के कोने-कोने से लोग आते हैं। और अपनी मन्नतें पूरी होने की उम्मीद के साथ घर वापस जाते हैं।


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