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इस महीने की दसवीं तारीख को एक खास त्यौहार

अतरौलिया आजमगढ़। मोहर्रम इस्लामी वर्ष यानी हिजरी सन् का पहला महीना होता है। यानी हिजरी सन् का आगाज इसी महीने से होता है। इसी नाम से इस महीने की दसवीं तारीख को एक खास त्यौहार होता है। जो एक तरह से मातम का पर्व होता है। दरअसल इस दिन जुलूस निकालकर इमाम हसन ,हुसैन की शहादत को याद किया जाता है। और रोजा रखा जाता है। उक्त बातें अतरौलिया जामा मस्जिद के पेश इमाम  हज़रत मौलाना अब्दुल बारी नेईमी ने बातचीत के दौरान बताया। उन्होंने कहा कि मोहर्रम महीने को इस्लाम के चार पवित्र महीनों में शुमार किया जाता है। हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इस माह को अल्लाह का महीना कहा है। और इस महीने में रोजा रखने का महत्व बताया है। हादीसों में आया है कि हजरत मोहम्मद स.अ.व. के कथन से मोहर्रम की पवित्रता व इसकी अहमियत का पता चलता है। मोहर्रम को जिस चार पवित्र महीनों में रखा गया है ।उसमें से 2 महीने मोहर्रम से पहले आते हैं। जीकादा व जिलहिज्जा। हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्ला वसल्लम ने कहा कि रमजान के अलावा सबसे उत्तम रोजे वह हैं जो अल्लाह के महीने यानी मोहर्रम में रखे जाते हैं। अब्दुल बारी नईमी ने बताया कि जिस तरह फर्ज नमाजों के बाद सबसे खास तहज्जुद की नमाज होती है। उसी तरह रमजान के बाद उत्तम रोजे मोहर्रम के हैं। इस माह में अल्लाह की इबादत की नसीहत दी गई है। इस बारे में कई प्रमाण हदीसों मौजूद हैं। इसी तरह मोहर्रम की नावीं तारीख को की जाने की जाने वाली इबादतों का भी बड़ा नवाब होता है। बताया कि मोहर्रम की 9 तारीख का रोजा रखने वाले के 2 साल के गुनाह माफ हो जाते हैं। इतना ही नहीं मोहर्रम के एक रोजे का शवाब 30 रोजे के बराबर होता है।कहने का मतलब यह है कि यह रोजे जरूरी नहीं हैं। लेकिन इनका शवाब  बहुत ज्यादा है ।इसलिए मोहर्रम के महीने में खूब रोजे रखने चाहिए।


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