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वैदिक- ज्योतिष के आइने में मकर संक्रांति, उसका महत्व एवं फलदायी उपाय,आपनी राशि के अनुसार करें दान : makarsankranti 2021

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वैदिक- ज्योतिष के आइने में मकर संक्रांति, उसका महत्व एवं फलदायी उपाय।●
पं. कृपाराम उपाध्याय "ज्योतिषाचार्य भोपाल के अनुसार
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शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है।
          मकर संक्रांति से अग्नि तत्त्व की शुरुआत होती है और कर्क संक्रांति से जल तत्त्व की. इस समय सूर्य उत्तरायण होता है अतः इस समय किये गए जप और दान का फल अनंत गुना होता है मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी।
         
●मकर संक्रांं‍ति पूजा व‍िध‍ि●


"भविष्यपुराण" के अनुसार सूर्य के उत्तरायण के दिन संक्रांति व्रत करना चाहिए। पानी में तिल मिलाकार स्नान करना चाहिए। अगर संभव हो तो गंगा स्नान करना चाहिए। इस द‍िन तीर्थ स्थान या पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व अधिक है। इसके बाद भगवान सूर्यदेव की पंचोपचार विधि से पूजा-अर्चना करनी चाहिए, इसके बाद यथा सामर्थ्य गंगा घाट अथवा घर मे ही पूर्वाभिमुख होकर यथा सामर्थ्य गायत्री मन्त्र अथवा सूर्य मंत्रों का अधिक से अधिक जाप करना चाहिये।

●मन्त्र...●

●१- ऊं सूर्याय नम: ऊं आदित्याय नम: ऊं सप्तार्चिषे नम:●
●२- ऋड्मण्डलाय नम: , ऊं सवित्रे नम: , ऊं वरुणाय नम: , ऊं सप्तसप्त्ये नम: , ऊं मार्तण्डाय नम: , ऊं विष्णवे नम:●
    पूजा-अर्चना में भगवान को भी तिल और गुड़ से बने सामग्रियों का भोग लगाएं। तदोपरान्त ज्यादा से ज्यादा भोग प्रसाद बांटे।
    इसको घर में बनाए या बाजार में उपलब्ध तिल के बनाए सामग्रियों का सेवन करें। इस पुण्य कार्य के दौरान किसी से भी कड़वे बोलना अच्छा नहीं माना गया है।
      मकर संक्रांति पर अपने पितरों का ध्यान और उन्हें तर्पण जरूर देना चाहिए।पं.कृ.उ.

●राशि के अनुसार वस्तुओं का दान

●मेष● गुड़, मूंगफली दाने एवं तिल का दान करें।
●वृषभ● सफेद कपड़ा, दही एवं तिल का दान करें।
●मिथुन●मूंग दाल, चावल एवं कंबल का दान करें।
●कर्क● चावल, चांदी एवं सफेद तिल का दान करें।
●सिंह● तांबा, गेहूं एवं सोने के मोती का दान करें।
●कन्या● खिचड़ी, कंबल एवं हरे कपड़े का दान करें।
●तुला●सफेद डायमंड, शकर एवं कंबल का दान करें।
●वृश्चिक● मूंगा, लाल कपड़ा एवं तिल का दान करें।
●धनु●पीला कपड़ा, खड़ी हल्दी एवं सोने का मोती दान करें।
●मकर● काला कंबल, तेल एवं काली तिल दान करें।
●कुंभ● काला कपड़ा, काली उड़द, खिचड़ी एवं तिल दान करें।
●मीन● रेशमी कपड़ा, चने की दाल, चावल एवं तिल दान करें।
   
●कुछ अन्य उपाय


सूर्य और शनि का सम्बन्ध इस पर्व से होने के कारण यह काफी महत्वपूर्ण है
    कहते हैं इसी त्यौहार पर सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने के लिए आते हैं
    आम तौर पर शुक्र का उदय भी लगभग इसी समय होता है इसलिए यहाँ से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है...
पं.कृ.उ.

    ●संक्रांति पर क्या क्या करें...


-अगर कुंडली में सूर्य या शनि की स्थिति ख़राब हो तो इस पर्व पर विशेष तरह की पूजा से उसको ठीक कर सकते हैं
-जहाँ पर परिवार में रोग कलह तथा अशांति हो वहां पर रसोई घर में ग्रहों के विशेष नवान्न से पूजा करके लाभ लिया जा सकता है...

- पहली होरा में स्नान करें,सूर्य को अर्घ्य दें
- श्रीमदभागवद के एक अध्याय का पाठ करें,या गीता का पाठ करें
-मनोकामना संकल्प कर नए अन्न, कम्बल, घी का दान करें
-लाल फूल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें
- सूर्य के बीज मंत्र का जाप करें... मंत्र...
"ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः"
-संध्या काल में अन्न का सेवन न करें
-तिल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें
- शनि देव के मंत्र का जाप करें...
- मंत्र "ॐ प्रां प्री प्रौं सः शनैश्चराय नमः"
-घी,काला कम्बल और लोहे का दान करें...
●मकर संक्रान्ति का शुभ कब है मुहूर्त्त --


मकर संक्रांति 2021 इस साल बेहद खास संयोग में आ रहा है। इस पर अच्छी बात यह भी है कि इस साल मकर संक्रांति की तिथि को लेकर किसी तरह का कन्फ्यूजन भी नहीं है। इस साल मकर संक्रांति 14 जनवरी को ही पूरे देश में मनाई जाएगी। इसी दिन पोंगल, बिहू और उत्तरायण पर्व भी मनाया जाएगा।
  ●मकर संक्रांति पर सूर्य का मकर में प्रवेश-
मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाए जाने की वजह यह है कि इस साल ग्रहों के राजा सूर्य का मकर राशि में आगमन गुरुवार 14 जनवरी को हो रहा है। गुरुवार को संक्रांति होने की वजह से यह नंदा और नक्षत्रानुसार महोदरी संक्रांति मानी जाएगी जो ब्राह्मणों, शिक्षकों, लेखकों, छात्रों के लिए लाभप्रद और शुभ रहेगी। शास्त्रों का मत है कि संक्रांति के 6 घंटे 24 मिनट पहले से पुण्य काल का आरंभ हो जात है। इसलिए इस वर्ष ब्रह्म मुहूर्त से संक्रांति का स्नान दान पुण्य किया जा सकेगा। इस दिन दोपहर 2 बजकर 38 मिनट तक का समय संक्रांति से संबंधित धार्मिक कार्यों के लिए उत्तम रहेगा। वैसे पूरे दिन भी स्नान दान किया जा सकता है।


●मकर संक्रांति की तिथि बदलते रहने का पुराना इतिहास---


      मकर संक्रांति पर तिथियों को लेकर बीते कुछ वर्षों में उलझन की स्थिति बनी हुई रहती है क्योंकि कई बार सूर्य का प्रवेश 14 जनवरी को शाम और रात में होता है। ऐसे में शास्त्रों के अनुसार संक्रांति अगले दिन माना जाता है। आपको बता दें कि मकर संक्रांति का समय युगों से बदलता रहा है। ज्योतिषीय गणना और घटनाओं को जोड़ने से मालूम होता है कि महाभारत काल में मकर संक्रांति दिसंबर में मनाई जाती थी। ऐसा उल्लेख मिलता है कि 6ठी शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के समय में 24 दिसंबर को मकर संक्रांति मनाई गयी थी। अकबर के समय में 10 जनवरी और शिवाजी महाराज के काल में 11 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई गई थी। पं.कृ.उ.

●सूर्य की चाल से मकर संक्रांति की तारीख का रहस्य


        मकर संक्रांति की तिथि का यह रहस्य इसलिए है क्योंकि सूर्य की गति एक साल में 20 सेकंड बढ जाती है। इस हिसाब से 5000 साल के बाद संभव है कि मकर संक्रांति जनवरी में नहीं बल्कि फरवरी में मनाई जाएगी। वैसे इस साल अच्छी बात यह है कि मकर संक्रांति पर सूर्य का आगमन 14 तारीख को सुबह में ही हो रहा है इसलिए मकर संक्रांति गुरुवार 14 जनवरी को ही मनाई जाएगी।

●मकर संक्रांति के साथ समाप्त हो जाएगा खरमास



    मकर संक्रांति को सूर्य के धनु राशि में आने से खरमास समाप्त हो जाएगा। लेकिन इस बार खरमास समाप्त होने पर भी विवाह और दूसरे शुभ कार्य का आयोजन नहीं किया जा सकेगा। इसकी वजह यह है कि मकर संक्रांति के 3 दिन बाद ही गुरु अस्त हो जा रहे हैं। गुरु तारा अस्त होने से शुभ कार्यों पर 14 फरवरी तक विराम लगा रहेगा।

इसलिए अबकी बार मकर संक्रांति


इस बार मकर संक्रांति के दिन सबसे खास बात यह है कि सूर्य के पुत्र शनि स्वयं अपने घर मकर राशि में गुरु महाराज बृहस्पति और ग्रहों के राजकुमार बुध एवं नक्षत्रपति चंद्रमा को साथ लेकर सूर्यदेव का मकर राशि में स्वागत करेंगे। ग्रहों का ऐसा संयोग बहुत ही दुर्लभ माना जाता है क्योंकि ग्रहों के इस संयोग में स्वयं ग्रहों के राजा, गुरु, राजकुमार, न्यायाधीश और नक्षत्रपति साथ रहेंगे। सूर्य का प्रवेश श्रवण नक्षत्र में होगा जिससे ध्वज नामक शुभ योग बनेगा। ग्रहों के राज सूर्य सिंह पर सवार होकर मकर में संक्रमण करेंगे। ऐसे में राजनीति में सत्ता पक्ष का प्रभाव बढ़ेगा और देश में राजनीतिक उथल-पुथल, कुछ स्थानों पर सत्ता में फेरबदल भी हो सकता है।

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