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जीव जन्तु के लुप्त होने पर मानव जीवन पर आ सकता है संकट डॉ सबीहा खातून

अम्बेडकर नगर जिले मे गौरैया संरक्षण के लिए पिछले कई वर्षों से इस नन्ही चिड़िया को बचाने और संरक्षण करने के लिए आरोग्य विहार एवं पंचकर्म संस्थान राजेसुल्तानपुर की उप निदेशक डॉ सबीहा खातून ने अपने घर  को नन्ही चिड़िया के लिए 8 वर्ष पूर्व एक झाड़ीदार वृक्ष  घर के सामने लगाया जो आज बहुत घना हो गया है जिसमें झाड़ीदार फूल के वृक्ष में दर्जनों गोरैयों के घोसले बने हैं। आपको बता दे कि वृक्ष के साथ छोटे छोटे वर्तनो में जहां इनके लिए दाना पानी की भी व्यवस्था की गई है अपने अनुकूल परिवेश होने पर यह नन्ही चिड़िया स्वतः ही तमाम घोंसले बना रखे हैं समय-समय पर विद्यालयों के माध्यम से गौरैया संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक किया जाता है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में पर्यावरण प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग ,फसलों पर बहुतायत रासायनिक उर्वरकों का प्रयोगऔर प्राकृतिक आवासों के कम होने से देश में गौरैया की संख्या कम हो रही है जो चिंताजनक है। बढ़ते प्रदूषण व तापमान से इनकी संख्या में बेतहाशा कमी दर्ज हुई है। आबादी बढ़ने से जंगल काट कर ईमारत बनाई जा रही है बाग बगीचे खत्म हो रहे हैं यह कम ही घरों में देखने को मिलती हैं ।घर आंगन की यह नन्ही मेहमान आज पुस्तकों और कविताओं में जाने को अभिशप्त है। पक्षियों के  विलुप्त होने के जिम्मेदार इंसान हैं।महज दिवस मनाने से संरक्षण नहीं होगा, गंभीरता से काम करना पड़ेगा। तेजी से लुप्त होती गोरैया को नीदरलैंड में दुर्लभ प्रजाति की श्रेणी में रखा गया है। दुनिया भर में इसकी 26 प्रजातियां पायी जाती पांच किस्में भारत में है जिसकी संख्या तेजी से घट रही है।उन्होंने चेताया कि धरती से किसी भी पक्षी और जीव जंतु का लुप्त होना भोजन श्रृंखला पर भी असर डालता है। ऐसे में किसी एक पक्षी या जीव के लुप्त होने से मानव जीवन के साथ पृथ्वी पर भी संकट मंडरा सकता है लोगों को जागरूक होकर फिर से गौरैया की चहचाहट वापस लानी होगी।


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