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सत्ता के लिए पूर्वांचल को लुभाने में लगीं यूपी की राजनीतिक पार्टियां, कौन मारेगा बाजी? आइये आज.....

पूर्वांचल की 117 सीटों पर फतह के लिए सभी राजनीतिक दलों ने अपने पत्ते खोल दिए हैं लेकिन किसका दांव सबसे मजबूत है यह देखना दिलचस्प होगा।
2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल में कौन भारी पड़ेगा यह तो समय बताएगा लेकिन राजनीतिक दलों ने इलाके में अपने दांव-पेच चलाना अभी से शुरू कर दिया सबका दावा पूर्वांचल जीतने का है लेकिन राह किसी की आसान नहीं दिख रही है। अखिलेश यादव से लेकर मायावती और ओवैसी तक सभी की नजर मुस्लिम और अति पिछड़ा वोटों पर है। किसान से लेकर सांड़ तक के मुद्दे अभी से हवा में तैरने लगे है अतीत पर एक नजर डाली जाए तो पूर्वांचल ने जिसका भी साथ दिया वह सत्ता का सुख भोगने में सफल रहा है। पूर्वांचल की मदद से ही मुलायम सिंह यादव से लेकर मायावती और अखिलेश तक सत्ता के शिखर पर पहुंचे। अब पूर्वांचल के दम पर ही सीएम योगी आदित्यनाथ सत्ता का सुख भोग रहे हैं। योगी सरकार के कार्यकाल 2022 में पूरे होने वाले हैं और अब चर्चा है कि अगली सरकार किसकी होगी? क्योंकि साल 2012 से यूपी के मतदाताओं का ट्रेंड बदल गया है। उन्होंने खिचड़ी सरकार की बजाय किसी एक दल को बहुमत देने को प्राथमिकता दी है। इसमें पूर्वांचल की भूमिका महत्वपूर्ण रही है।
साल 2007 में बीएसपी ने पूर्वांचल में बड़ी जीत हासिल की तो मायावती पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल रहीं। इसके बाद साल 2012 में पूर्वांचल में बड़ी जीत हासिल कर अखिलेश यादव ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। साल 2017 में पूर्वांचल के लोग बीजेपी के साथ खड़े हुए तो पार्टी ने यूपी में प्रचंड बहुमत हासिल किया। अब किसान से लेकर छुट्टा सांड तक का मुद्दा फिजा में तैर रहा है। बीएसपी में नौ साल से सत्ता की दूरी की छटपटाहट है तो सपा 5 साल से सत्ता की दूरी बर्दाश्त नहीं कर पा रही है। वहीं कांग्रेस 31 साल का सूखा खत्म करने के लिए बेचैन है।
पूर्वांचल की 117 सीटों पर सबकी नजर पूर्वांचल की 117 सीटों पर है, जिसमें दस सीट आजमगढ़ की है। सांसद बनने के बाद से ही आजमगढ़ की अनदेखी का आरोप झेल रहे अखिलेश यादव ने जिला मुख्यालय पर कार्यालय के लिए करीब 2 बीघा जमीन खरीद ली है। अखिलेश ने साल 2022 के विधानसभा चुनाव के संचालन का फैसला आजमगढ़ से किया है। सपाइयों का दावा है कि पार्टी मुखिया आजमगढ़ में अपने नए आशियाने से पूरे पूर्वांचल को साधेंगे और बड़ी जीत हासिल करेंगे।
वहीं बीएसपी ने हाल ही में पूर्वांचल के मऊ के रहने वाले भीम राजभर को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर बड़ा दांव खेल दिया है। बीएसपी की नजर सीधे तौर पर अति पिछड़े और मुस्लिम मतदाताओं पर है। वहीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने आजमगढ़ की अनाबिया को अपने वार्षिक कैलेंडर में शामिल कर मुसलमानों को साधने की पूरी कोशिश की है।मुस्लिम मतदाताओं में लग सकती है सेंध
राजनीति के जानकार रामजीत सिंह, त्रिपुरारी यादव बताते हैं कि सत्ता से लेकर विपक्ष तक की नजर अति पिछड़ों पर है, इसलिए पूर्वांचल को फोकस कर सभी दल अपने-अपने दांव चल रहे हैं। रहा सवाल मुस्लिम मतदाताओं का तो वे हमेशा से बीजेपी को हराने वाले को वोटिंग करते रहे हैं लेकिन इस बार बिहार की तरह यूपी में भी भागीदारी संकल्प मोर्चा इस मतदाता वर्ग में सेंध लगा सकता है। अगर ये दो-तीन प्रतिशत भी वोट काटते हैं तो चुनाव काफी दिलचस्प होगा।
दूसरी तरफ अति पिछड़े विधानसभा उप चुनाव तक बीजेपी के साथ खड़े दिखे हैं। दूसरे दलों को इन्हें तोड़ना है तो मजबूत आधार बनाना होगा जो आज के समय में इतना आसान नहीं होगा। कारण कि समाज जातिगत आधार पर बंटा है। ऐसे में चुनाव में काफी करीबी मुकाबला होने की संभावना है।।


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