आखिर कैसे पिछले चुनाव में मुस्लिम बाहुल सीटों पर भाजपा को मिली थी भारी जीत, क्या इस बार भी इस....
वर्ष 2017 के विधान सभा चुनाव के नतीजे एनडीए के पक्ष में भारी बहुमत के साथ आए। इस चुनाव में भाजपा के पक्ष में लहर का नतीजा रहा कि देवबंद की सीट भी भाजपा के विरोधी अपने पक्ष में नहीं कर सके। भाजपा उम्मीदवार ब्रजेश पाठक ने करीब तीस हजार वोटों से जीत हासिल की थी। इस सीट पर दूसरे नंबर पर बहुजन समाज पार्टी के माजिद अली रहे जिन्होंने 72,844 मत हासिल किए जबकि तीसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी के माविया अली रहे जिन्होंने 55,385 मत हासिल किया।आंकड़े बताते हैं कि करीब 2 दर्जन ऐसी सीटें थीं, जहां मुस्लिम वोटों के विभाजन से बीजेपी को फायदा पहुंचा। इन सीटों में मुजफ्फरनगर, शामली, सहारनपुर, बरेली, बिजनौर, मेरठ की सरधना, संतकबीर नगर की खलीलाबाद, अंबेडकर नगर की टांडा, श्रावस्ती जिले की श्रावस्ती और गैन्सारी, मुराबादाबाद, लखनऊ (पूर्व), लखनऊ (सेंट्रल), अलीगढ,सिवलखास, नानपुरा, शाहाबाद, बहेरी, फिरोजाबाद, चांदपुर और कुंडिरकी शामिल हैं।
आश्चर्यजनक बात ये थी कि बीजेपी ने उन मुस्लिम बहुल क्षेत्रों या सीटों पर जीत हासिल की थी, जिसकी किसी ने उम्मीद भी नहीं की होगी। बीजेपी ने 82 मुस्लिम बहुल सीटों में से 62 ऐसी सीटों पर जीत हासिल की थी, जहां मुस्लिम वोटरों की आबादी एक तिहाई है।
इंकलाब मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व राज्यसभा के पूर्व सदस्य आसमोहम्मद कहते हैं कि वर्ष 2017 के विधान सभा चुनाव में भाजपा अपनी विभाजन कारी राजनीति में कामयाब हो गई थी। उनके मंसूबे इस बार कामयाब नहीं होगी। राज्य की मस्लिम बाहुल आबादी वाले सीटों पर भाजपा विरोधी मतों को गोलबंद करने के लिए विभिन्न संगठनों ने रणनीति बनाई है। एआईएमआईएम के असदुददीन आवैसी के भुलावे में राज्य का मुसलमान इस बार नहीं आयेगा। उन्होंने कहा कि हमने कभी ओवैसी,अतिक अहमद,मुख्तार अंसारी,मो. शहाबुद्दीन जैसे लोगों की राजनीति की पैरोकारी नहीं की। ये मुसलमानों के खास वर्ग के पैरोकार रहे हैं।इन्हें कभी आम मुसलमानों के सेहत की चिंता नहीं रही। इस बार उनके मंसूबों को मुसलमान कामयाब होने नही देंगे। भाजपा को हराने वाले उम्मीदवार का हम साथ देंगे। इस कोशिश में भले ही मुस्लिम उम्मीदवारों को कम जीत मिले। श्री मोहम्मद ने कहा कि यह चुनाव हिटलर की मानसीकता वाली राजनीति के खिलाफ जायेगा। इतिहास गवाह है कि हिटलर को समाप्त करने के लिए अलग अलग क्षेत्र की शक्तियां एकजूट हुई थी। जिसमें चर्चिल,रूजवेल्ट व स्टालिन शामिल रहें। यह इतिहास एक बार फिर दोहराने का वक्त आ गया है।उन्होंने अखिलेश व मायावती के दोहरा राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा कि ममता बनर्जी से सबक लेनी चाहिए। पश्चिम बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी ने अकेले भाजपा का मजबूती से मुकाबला करते हुए उन्हें भारी अंतर से पराजय दिलाया। ममता बनर्जी ऐसे माहौल में चुनाव लड़ रही थी,जब उनके साथ के सभी बड़े नेताओं को भाजपा सीबीआई व अपनी अन्य जांच एजेंसियों का भय दिखाकर तोड़ने का काम की थी। लेकिन ममता ने चुनाव जीतने के बाद एक बार फिर उन नेताओं को अपने पाले में करने में कामयाब रही हैं। जबकि सपा व बसपा के मुखिया यह सोंचते हैं कि वर्ष 2024 तक केेंद्र में भाजपा की सरकार है। इन्हें हमेशा जेल जाने का डर सताता है।ऐसे लोगों से सांप्रदायिक ताकतों का मुकाबला सही मायने में नहीं किया जा सकता। इसके लिए जनता को अपनी एकजुटता प्रदर्शित करनी होगीराज्य के 75 जिलों में स्थित मतदाताओं की संख्या तकरीबन 15 करोड़ से अधिक है। जिनमें से तकरीबन 100 सीटें ऐसी हैं,जहां मुस्लिम मतदाता आंशिक व पूर्ण रूप से निर्णायक हैं। इसलिए ही एआईएमआईएम के असदुददीन आवैसी ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर इन सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बनाया है। हालांकि इन सीटों पर आकलन करें तो वर्ष 2017 के विधान सभा चुनाव में सबसे कम 24 मुस्लिम विधायक बने थे। जबकि 2012 में यह संख्या 70 की रही। हालांकि वर्ष 2007 के विधान सभा चुनाव में मुस्लिम 56 प्रत्याशी चुनाव जीत कर सदन में पहुंच पाए थे। इस बार पश्चिम में भाजपा की सर्वाधिक खराब हालात होने के आकलन किए जा रहे हैं। यहां रालोद का सपा को साथ मिला है। ऐसे में मुसलमान,दलित व जाट को एक मंच पर लाकर सपा गठबंधन सर्वाधिक सीटों पर कामयाबी हासिल करने के इंतजार में है।जिसमें से मुस्लिम प्रत्याशियों की संख्या बेहतर होगी।
15 साल बाद के लंबे इंतजार के बाद यूपी की सत्ता जनता ने बीजेपी को वर्ष 2017 में सौंप दी थी। 403 विधानसभा सीट में से 325 बीजेपी ने जीत ली थीं। जबकि सपा-कांग्रेस गठबंधन को 54 और बसपा को 19 सीटें मिली थीं। जिनमें से मुस्लिम बहुल इलाकों की बात करें तो मुरादाबाद नगर सीट भाजपा की झोली में आई। यहां से समाजवादी पार्टी के मौजूदा विधायक यूसुफ अंसारी को भाजपा के रीतेश कुमार गुप्ता ने करीब बीस हजार वोटों से हराया था। इस सीट पर तीसरे नंबर पर बसपा के अतीक सैफी रहे जिन्होंने 24,650 वोट हासिल किए। मुरादाबाद की ही मुस्लिम बहुल कांठ सीट पर भाजपा के राजेश कुमार चुन्नू ने 76,307 वोट लेकर सपा के अनीसुर्रहमान को 2348 मतों से हराया। इस सीट पर तीसरे नंबर पर बसपा के मोहम्मद नासिर रहे जिन्हें 43,820 मत मिले। इस सीट पर दूसरे नंबर पर राष्ट्रीय लोकदल के जावेद राव रहे जिन्होंने 31,275 मत हासिल किए थे।उतरौला सीट से भाजपा के राम प्रताप ने 85,240 वोट पाकर 56,066 मत पाने वले सपा के आरिफ अनवर हाशमी को हराया। इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी के परवेज अहमद 44,799 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे।
2013 दंगों का केंद्र रही मुजफ्फरनगर की मीरापुर विधानसभा सीट पर भी वोटों का तीन तरफ विभाजन साफ नजर आया था। समाजवादी पार्टी यह सीट बीजेपी से महज 193 वोटों से हार गई थी। बीजेपी प्रत्याशी अवतार सिंह भडाना को 69,035 वोट मिले थे। जबकि सपा के लियाकत अली को 68,842. वहीं बीएसपी के नवाजीश आलम खान को 38,689 वोट मिले थे। टांडा में सपा के अजीमुल हक पहलवान बीजेपी की संजू देवी से हार गए थे। मुरादाबाद नगर में बीजेपी के आरके गुप्ता ने सपा के मोहम्मद यूसुफ अंसारी को 3,193 वोटों से मात दी थी.
फैजाबाद की रुदौली सीट से बीजेपी के रामचंद्र यादव ने सपा के अब्बास अली जैदी को तीस हजार वोटों से मात दी थी. शामली की थाना भवन सीट से बीजेपी के सुरेश कुमार ने 90,995 वोट हासिल कर बसपा के अब्दुल वारिस खान को शिकस्त दी थी।।
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