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'प्रेमचंद्र सनातन परम्परा के पोषक' - डॉ.सुशील कुमार पाण्डेय 'साहित्येंदु'

- जमखुरी गांव में मनाई गई प्रेमचंद्र जयंती 
  - प्रेमचंद को बताया गया राष्ट्रवादी साहित्यकार 
सुलतानपुर । प्रेमचंद्र सनातन भारतीय परम्परा के पोषक हैं। उनकी रचनाओं में लोक संस्कृति मुखर हुई है।' यह बातें वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सुशील कुमार पाण्डेय 'साहित्येन्दु' ने कहीं। वे जमखुरी गांव में अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा आयोजित प्रेमचंद्र जयंती समारोह को बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित कर रहे थे। 
उन्होंने कहा कि प्रेमचंद्र को ब्राह्मण संस्कृति पसंद नहीं थी । रूढ़ियों को तोड़ने के लिए उन्होंने तत्कालीन समाज की कमियों को बखूबी उजागर किया है। 
परिषद के जिला महामंत्री और संत तुलसीदास स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. करुणेश भट्ट ने कहा प्रेमचंद्र भारतीय संस्कृति के व्याख्याता हैं। उनकी रचनाओं में पाश्चात्य सभ्यता पर करारे व्यंग्य किये गये हैं।  
 राणा प्रताप स्नातकोत्तर महाविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह रवि ने कहा कि प्रेमचंद राष्ट्रवादी साहित्यकार थे। आलोचकों ने उनकी रचनाओं को एक विशेष विचारधारा से देखा और गलत विश्लेषण किया इसको सुधारने की जरूरत है। वे मानवीय संवेदनाओं के सूक्ष्म चितेरे हैं। राष्ट्रीयता और भारतीय संस्कृति प्रेमचंद के साहित्य में भरपूर है। 
अवनीश पाण्डेय ने कहा प्रेमचंद का साहित्य अनुभूतियों का खजाना है। उनकी रचनाओं में गांव बोलता है।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कथाकार दिनेश प्रताप सिंह 'चित्रेश' ने कहा प्रेमचंद का व्यक्तित्व इतना विराट था कि संकुचित विचारधारा के संगठन उन्हें नहीं पचा पाये। प्रेमचंद की भंगिमा में पूरा समाज रहता था जबकि आज गांव और गरीब के नाम पर लिखने वाले साहित्यकारों की भंगिमा खराब है इसलिए वे पाठकों को प्रभावित नहीं कर पा रहे हैं ।
सरस्वती वंदना लोकगीतकार राजबहादुर राना , स्वागत व आभार परिषद के जिला उपाध्यक्ष डॉ.रामप्यारे प्रजापति तथा संचालन ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह रवि ने किया।  
संगोष्ठी में सर्वेशकांत वर्मा 'सरल' ,पवन कुमार सिंह,रमेशचंद्र शर्मा 'नंदवंशी' ,अनिल कुमार वर्मा 'मधुर' , समर बहादुर, रामपाल कनौजिया आदि ने भी अपने विचार रखे।
इससे पूर्व मंचस्थ अतिथियों समेत सभी उपस्थित लोगों ने कथा सम्राट प्रेमचंद्र के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की ।


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