पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगो के लिए पथ प्रदशक है, आइये देखते है क्या....
आज पूरा विश्व भारत की ओर आशा भरी नजरों से देख रहा है, क्योंकि भारत ही विश्व को सही दिशा और दशा देने की क्षमता रखता है। ऐसे में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ होने के कारण मीडिया जगत की भूमिका और अधिक बढ़ जाती है कि विश्व के समक्ष अपने राष्ट्र की कैसी तस्वीर प्रस्तुत की जाए। भारत हमेशा से ही ज्ञान आराधक राष्ट्र रहा है। भारत की ज्ञान परंपरा औरों से विशेष इसलिए है क्योंकि यह केवल हमारे बाहर मौजूद लौकिक (मटेरियल) ज्ञान को ही महत्वपूर्ण नहीं मानती बल्कि आत्म-चिंतन द्वारा प्राप्त भीतर के ज्ञान को भी समान महत्व देती है। हमारे ऋषि-मुनियों ने हजारों वर्ष पूर्व इन दोनों ही प्रकार के ज्ञान को कड़ी साधना से अर्जित कर ग्रंथों के रूप में मानव समाज के लिए प्रस्तुत किया। आज चाहे योग की बात हो, विज्ञान की या फिर गणित की, पूरी दुनिया ने भारतीय ज्ञान से कुछ न कुछ लिया है। इस प्रकार हम एक श्रेष्ठ ज्ञान परंपरा के उत्तराधिकारी हैं।
ऐसे में नारद जयंती का दिन भारतीय पत्रकारिता में निहित मूल्यों के मूल्यांकन व आगे की राह तय करने का दिन है। महर्षि नारद मुनि पत्रकारों के प्रेरणास्रोत हैं। महर्षि नारद मुनि देव व दानव सभी के मध्य सूचनाओं का आदान-प्रदान बिना किसी स्वार्थ के लोकहित को ध्यान में रखकर किया करते थे। आज भी पत्रकारों को उनके पदचिन्हों पर चलकर मूल्य आधारित व शुद्ध पत्रकारिता निर्भयता के साथ करनी चाहिए। मीडिया से समाज की बहुत अपेक्षाएं रहती हैं इसलिए मीडिया पर भारी नैतिक दबाव भी रहता है, जिसे पूरा करने का प्रयास मीडिया करता ही है। भारत में सदैव लोकहित में संवाद करना यही मीडिया की परंपरा रही है।
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