उत्तर प्रदेश पंचायत के नतीजों से बजी खतरे की घंटी, भाजपा के 2022 के प्लान को पलीता न लगा दे पूर्वांचल
पूर्वांचल :उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पीएम नरेंद्र मोदी मजबूत गढ़ माने जाने वाले पूर्वांचल में बीजेपी की सियासी जमीन खिसकती हुई नजर आ रही है. गोरखपुर में सपा ने बीजेपी को कांटे की टक्कर दी है जबकि पीएम मोदी के वाराणसी में बीजेपी को करारी मात खानी पड़ी है. इस तरह से पूरे पूर्वांचल इलाके की जिला पंचायत के चुनाव में सपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है. ऐसे में साल 2022 में बीजेपी के लिए यह खतरे की घंटी है, क्योंकि पूर्वांचल का सियासी मिजाज हर पांच साल के बाद बदल जाता है.
काशी से सटे हुए इलाके में बीजेपी का प्रदर्शन
पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और इससे सटे आजमगढ़, मिर्जापुर मंडल के दस जिलों की 502 सीटों में से सपा के खाते में 25 फीसदी सीट आई है. वहीं, बीजेपी 14.94 फीसदी सीटें लेकर दूसरे और 14.54 फीसदी सीटों के साथ बसपा तीसरे स्थान पर रही है. बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान वाराणसी, जौनपुर, गाजीपुर में हुआ है. गाजीपुर की 64 में से सपा ने 35 सीटें जीती तो बीजेपी को 7 सीटें मिली हैं. ऐसे ही वाराणसी में सपा को 15 तो बीजेपी 7 सीटें मिली. ऐसे ही भदोही में सपा को 10 और बीजेपी को महज 4 सीटें मिली हैं.
वहीं, सीएम योगी के गढ़ माने जाने वाले गोरखपुर और बस्ती मंडल में जिला पंचायत सदस्य की कुल सीटें 350 सीटें हैं. यहां सपा को 78 सीटें मिली हैं जबकि बीजेपी को 63 सीटें. वहीं, बसपा को 33, कांग्रेस को 8, निर्दल 159 सीटों पर जीते हैं. अन्य 9 सीटों पर विजयी रहे हैं. गोरखपुर में बीजेपी 23 तो सपा 20 सीटें मिली. सिद्धार्थनगर में सपा 16 तो बीजेपी को 9 जबकि देवरिया में सपा को 15 तो बीजेपी 7 सीटें मिली हैं.
*पूर्वांचल में पंचायत चुनाव के नतीजे*
पूर्वांचल के कुशीनगर, देवरिया, गोंडा, आजमगढ़, अयोध्या, वाराणसी, प्रतापगढ़, जौनपुर, महाराजगंज, बस्ती, प्रयागराज, में जिस तरह से सपा नंबर वन पार्टी बनकर ही नहीं उभरी बल्कि बहुमत के करीब भी है. बीजेपी पूर्वांचल में 118 सीटें जीतने का दावा कर रही है और सपा के मुताबिक उसे 171 सीटें हाथ लगी हैं. वहीं, बसपा ने पूर्वांचल में पश्चिमी यूपी के बाद सबसे ज्यादा 90 सीटें जीती हैं.
पूर्वांचल के पंचायत चुनाव नतीजे बीजेपी के लिए चिंता बढ़ाने वाला माना जा रहा है, क्योंकि इसे 2022 का सेमीफाइल माना जा रहा है. 2017 में बीजेपी इसी इलाके से बड़ी संख्या में सीटें जीतकर सूबे में 14 साल के अपने सत्ता के वनवास को ख्तम किया था और सत्ता की कमान पूर्वांचल से आने वाले योगी आदित्यनाथ को सौंपी गई थी. ऐसे में सीएम योगी अपना दुर्ग नहीं बचा सके हैं वो भी तक जब हर पांच साल पर पूर्वांचल का सियासी मिजाज बदल जाता है.
बीजेपी के लिए चिंता बढ़ाने वाला नतीजा
उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव के 2022 का सेमीफाइल के तौर पर देखा जाना चाहिए, क्योंकि आठ महीने के बाद विधानसभा चुना है. पूर्वांचल को लेकर सीएम योगी और उनकी पार्टी बहुत ज्यादा कन्फिडेंस में थी, लेकिन जिस तरह से पंचायत चुनाव में हार मिली है, उससे बीजेपी के लिए आगे की राह मुश्किल कर दी है. इसके पीछे वजह यह है कि पूर्वांचल सपा का मजबूत गढ़ रहा है और यहां को वोटर किसी के साथ स्थाई तौर पर नहीं रहता है. पंचायत चुनाव में दोबारा से सपा ने इस पूरे इलाके में वापसी की है. वहीं, सीएम योगी और पीएम मोदी के इलाके में बीजेपी की हार होना वाकई चिंता बढ़ाने वाली है.
यूपी की 33 फीसदी सीटें पूर्वांचल में आती हैं
दरअसल, पूर्वांचल की जंग फतह करने के बाद ही यूपी की सत्ता पर कोई पार्टी काबिज हो सकती है, क्योंकि सूबे की 33 फीसदी सीटें इसी इलाके की हैं. हालांकि, पिछले तीन दशक में पूर्वांचल का मतदाता कभी किसी एक पार्टी के साथ नहीं रहा. वह एक चुनाव के बाद दूसरे चुनाव में एक का साथ छोड़कर दूसरे का साथ पकड़ता रहा है. सपा 2012 और बसपा 2007 में पूर्वांचल में बढ़िया प्रदर्शन करने के बाद भी इस इलाके पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए नहीं रख सकी थी. 2017 में बीजेपी ने इस इलाके में क्लीन स्वीप किया था, लेकिन 2019 में चार लोकसभा सीटें गवां दी है और पंचायत चुनाव में जिस तरह से पार्टी को हार मिली है उससे विपक्ष के हौसले बुलंद हो गए हैं,
पूर्वांचल के 28 जिले की 164 सीटें आती हैं.
पूर्वांचल में 28 जिले आते हैं, जो सूबे की राजनीतिक दशा और दिशा तय करते हैं. इनमें वाराणसी, जौनपुर, भदोही, मिर्जापुर, सोनभद्र, प्रयागराज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महाराजगंज, संतकबीरनगर, बस्ती, आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, बलिया, सिद्धार्थनगर, चंदौली, अयोध्या, गोंडा, बलरामपुर, श्रावस्ती, बहराइच, सुल्तानपुर, अमेठी, प्रतापगढ़, कौशांबी और अंबेडकरनगर जिले शामिल हैं. इन 28 जिलों में कुल 164 विधानसभा सीट शामिल हैं ।पूर्वांचल में हर चुनाव में बदलता मिजाज
बीजेपी ने 2017 के चुनाव में पूर्वांचल की 164 में से 115 सीट पर कब्जा जमाया था जबकि सपा ने 17, बसपा ने 14, कांग्रेस को 2 और अन्य को 16 सीटें मिली थी. ऐसे ही 2012 के चुनाव में सपा ने 102 सीटें जीती थीं जबकि बीजेपी को 17, बसपा को 22, कांग्रेस को 15 और अन्य को 8 सीटें मिली थीं. वहीं, 2007 में मायावती पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई थी तो पूर्वांचल की अहम भूमिका रही थी. बसपा 85 सीटें जीतने में कामयाब रही थी जबकि सपा 48, बीजेपी 13, कांग्रेस 9 और अन्य को 4 सीटें मिली थी.
बीजेपी ने 2017 में पूर्वांचल की 28 जिलों की 164 विधानसभा सीट में से 115 सीट जीतकर भले ही रिकॉर्ड बनाया हो, लेकिन कई जिलों में पार्टी सपा से पीछे रह गई थी. बीजेपी आजमगढ़ की 10 में से सिर्फ एक सीट, जौनपुर की 9 में से 4, गाजीपुर की 7 में से 3, अंबेडकरनगर की पांच में से 2 और प्रतापगढ़ की 7 में से दो सीटें ही जीत सकी थी. इसीलिए पूर्वांचल के पंचायत चुनाव नतीजे बीजेपी के लिए चिंता सबब बन गए हैं.पूर्वांचल को साधे बिना सत्ता आसान नहीं
सपा प्रमुख अखिलेश यादव की नजर पूर्वांचल पर है. वो खुद आजमगढ़ से सांसद हैं. वहीं, योगी आदित्यनाथ खुद पूर्वांचल से हैं और 2017 के चुनाव में पूर्वांचल ने उन्हें गद्दी तक पहुंचाया है. पंचायत चुनाव में मिली हार के बाद बीजेपी इस बात को अच्छे से समझ गई होगी कि 2022 का विधानसभा चुनाव जीतना है तो पूर्वांचल को साधे रखना होगा, क्योंकि सपा और बसपा दोनों की नजर इसी इलाके पर है. ऐसे में देखना है कि 2022 में पूर्वांचल मिजाज बदलता या फिर नहीं?
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