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महाराजा सुहेलदेव राजभर जी का विजय दिवस शौर्य दिवस सुहेलदेव जनता पार्टी ने मनाया



दीदारगंज/आजमगढ़ : सुहेलदेव जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय संतलाल राजभर के आवाहन पर उत्तर प्रदेश के समस्त जिलों तहसीलों एवं गांवो में तथा देश के विभिन्न प्रांतों में महाराजा सुहेलदेव राजभर का 988 वां विजय दिवस शौर्य दिवस के रूप में पूरे धूमधाम से मनाया गया । इसी क्रम में दीदारगंज के फुलेश में भी सुहेलदेव जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने मशाल व दीप जलाकर जहां दीपोत्सव मनाया वहीं सुहेलदेव राजभर जी के स्वर्णिम इतिहास के बारे में एक दूसरे को बताने का कार्य किया। पार्टी के कार्यकर्ताओं ने विजय दिवस पर बताया कि
महाराजा बीहरीमल राजभर के पुत्र सुहेलदेव जी का जन्म 1009 ईस्वी बसंत पंचमी के दिन को हुआ था। सुहेलदेव राजभर जी एक अत्यंत ही वीर पराक्रमी राष्ट्रभक्त होने के साथ-साथ हिंदू संस्कृति के सबसे बड़े रक्षक थे। धनुष विद्या, शब्दभेदी बाण ,तलवार, गदा एवं भाला चलाने में निपुण थे सुहेलदेव राजभर जी एक उच्च कोटि के शासक थे। अपने राज्य -काल में उन्होंने समता, स्वतंत्रता बंधुत्व एवं न्याय का सिद्धांत लागू किया था। जिससे प्रेरित होकर कालांतर में बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने भारतीय संविधान की रचना करने के बाद समता, स्वतंत्रता ,बंधुत्व एवं न्याय को ही स्लोगन के रूप में चुना। डॉक्टर अंबेडकर के साथ ही देश के अनेक महापुरुषों में सुहेलदेव राजभर जी को अपना आदर्श माना। सुहेलदेव जी के शासन काल में लोग घरों में ताला नही लगाते थे। सुहेलदेव जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने संतलाल राजभर ने बताया कि
10 जून 1034 में बहराइच में शैयद सालार मसूद गाजी का सामना श्रावस्ती नरेश चक्रवर्ती सम्राट राष्ट्रवीर महाराजा सुहेलदेव राजभर जी से हुआ । सुहेलदेव राजभर जी ने ना सिर्फ गाजी को बल्कि उनके लाखों सैनिकों को परास्त किया । घमासान युद्ध में सालार मसूद गाजी का वध करके एक अत्यंत ही दुर्दांत एवं खूंखार आक्रांता का अंत किया। 10 जून 1034 को गाजी मारा गया । जिसको विजय दिवस के रूप में मनाने की मान्यता रही है।
जब-जब समाज में असमानता फैली है तब तक ऐसे ही वीर पुरुषों ने पृथ्वी पर समता, स्वतंत्रता ,बंधुत्व और न्याय को स्थापित किया है।
सुहेलदेव जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने शुभकामना के साथ सभी लोगों को शौर्य दिवस की हार्दिक बधाई देते हुए सबको सुहेलदेव जी के आदर्शो पर चलने का आवाहन किया।


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