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राणा प्रताप पीजी कालेज में भक्ति काव्य पर हुई संगोष्ठी

सुलतानपुर। ' भक्ति कविता शास्त्र की जड़ता से लड़ती है। भक्ति काल के रचनाकार शास्त्र के बजाय अनुभव पर बल देते हैं। इस काल में जनता की बोली में साहित्य लिखा गया इसलिए भक्तिकाल की रचनाएं आम आदमी से सीधे जुड़ती हैं। भक्ति साहित्य लोकधर्मी है। ' 
 यह बातें राणा प्रताप स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष इन्द्रमणि कुमार ने कहीं। 
वह कालेज के संगोष्ठी कक्ष में बाबू धनंजय सिंह स्मृति आंतरिक व्याख्यान माला के अंतर्गत 'भक्ति काव्य के ऐतिहासिक सामाजिक परिप्रेक्ष्य' विषय पर हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित संगोष्ठी को बतौर मुख्यवक्ता सम्बोधित कर रहे थे। 
 उन्होंने बताया कि भक्ति आंदोलन उपासना के अधिकार के मांग का आंदोलन है। मध्य काल में अनेक जातियों और महिलाओं को उपासना के अधिकार से वंचित कर दिया गया था। इसी कारण भक्ति आंदोलन पैदा हुआ। उपासना की पारम्परिक पद्धतियों में जगह न मिलने पर निम्न और पिछड़ी जातियों ने उपासना की वैकल्पिक पद्धति खोजी । 
इन्द्रमणि कुमार ने कहा कि पश्चिमी विचारकों ने भारतीय परम्परा और ऐतिहासिकता को बिगाड़ कर गलत तरीके से प्रस्तुत किया है। अखिल भारतीय आन्दोलन के रूप में उपजे भक्ति काल में कई नई दार्शनिक सोच पैदा हुई ।
संगोष्ठी की अध्यक्षता प्राचार्य प्रोफेसर दिनेश कुमार त्रिपाठी , संचालन डॉ.प्रभात कुमार श्रीवास्तव और आभार ज्ञापन संयोजक डॉ.आलोक पाण्डेय ने किया। इस अवसर पर पूर्व प्राचार्य प्रोफेसर एम पी सिंह व उप प्राचार्य प्रोफेसर निशा सिंह समेत महाविद्यालय के समस्त शिक्षक व विद्यार्थी उपस्थित रहे।


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