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मृत्योपरांत तेरहवीं के जैसी पुरानी परम्परा से ऊपर उठाकर समाज में इस वक्त बढा श्रधांजलि के आयोजन का प्रचलन

आजमगढ़ /अम्बारी : मृत्योपरांत तेरहवीं के जैसी पुरानी परम्परा से ऊपर उठाकर समाज में श्रधांजलि के आयोजन के प्रचलन का समाज द्वारा काफी बढ़ावा मिल रहा है। मृत्युभोज एक पुरानी परंपरा है जिसे मनुष्य अज्ञानता में एक परम्परा मानकर तेरहवीं का आयोजन करता आ रहा है परन्तु 22वीं शदी में शिक्षित और जागरूक वर्ग तेरहवीं का बहिष्कार कर रहा है क्योंकि इसका मृत व्यक्ति का स्वर्ग और नर्क से कोई लेना देना नहीं होता है और न ही व्यक्ति को स्वर्ग और नर्क की किसी प्रकार की प्राप्ति होती है यह एक लोगों का भ्रम और सामाजिक अभिषाप है तथा मानव द्वारा मानव के ऊपर थोपा गया एक बोझ है। तेरहवीं करने के चक्कर में न जाने कितने गरीब परिवार जमीन,खेत और जेवरात तक गिरवी रख देते हैं । ऐसे में आज उपेन्द्र यादव ने मृत्युभोज का बहिष्कार कर अनूठी पहल की है। क्षेत्र के सैकड़ों लोग शोक सभा में सामिल होकर प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर रामधारी यादव को नमन किये। इसके पहले भी क्षेत्र में कई सम्मानित लोगों ने मृत्युभोज जैसी कुप्रथा का बहिष्कार कर चुके हैं। क्षेत्र में सर्वप्रथम पूर्व सांसद रामकृष्ण यादव की मृत्युपरांत श्रधांजलि सभा का आयोजन किया गया था जो एक मिसाल बानी और समाज में सुधार की एक लहर चल पड़ी।पूर्व सांसद रामकृष्ण यादव की पुण्यतिथि भी मनाई गई। ग्रामवासियों सहित क्षेत्र के तमाम लोग प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए। ऐसी पहल से समाज को सीख लेनी चाहिए और मृत्युभोज जैसी कुप्रथा से मुक्ति पा लेना चाहिए। राजस्थान सरकार ने मृत्युभोज पर पूर्ण से प्रतिबंधित पहले से ही लगा चुकी है तो उत्तर प्रदेश पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व रक्षामन्त्री मुलायम सिंह यादव के निधन पर तेरहवीं का बहिष्कार किया गया जबकि सैफई व आस पास के गांवों तेरहवीं नहीं मनाई जाती कई सम्मानित व जानेमाने लोगों ने तेरहवीं बहिष्कार पर अपनी बात भी रखी और तेरहवीं को इंसानों द्वारा इंसानों पर थोपा हुआ बोझ और कुप्रथा बताया।
कार्यक्रम के अंत में कथावाचकों को साल पहनाकर सम्मानित किया गया ।


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