हरतालिका तीज त्यौहार आज
लखनऊ : हरतालिका तीज व्रत के बारे में आचार्य त्रिभुवन नाथ शुक्ल ने बताया भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हरतालिका तीज मनाई जाती है। विशेषकर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बिहार में मनाया जाने वाला यह त्योहार करवाचौथ से भी कठिन माना जाता है क्योंकि जहां करवाचौथ में चांद देखने के बाद व्रत तोड़ दिया जाता है वहीं इस व्रत में पूरे दिन निर्जल व्रत किया जाता है और अगले दिन पूजन के पश्चात ही व्रत तोड़ा जाता है। इस व्रत से जुड़ी एक मान्यता यह है कि इस व्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वती के समान सुखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती हैं।
यह व्रत नारी के सौभाग्य की रक्षा करता है। धर्मग्रंथों में कहा गया है कि भगवान शिव को पतिस्वरूप में प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम पार्वती जी ने यह व्रत किया था। इस दिन व्रत करने वाली स्त्रियां सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं और नहा धोकर पूरा श्रृंगार करती हैं। पूजन के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरी−शंकर की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसके साथ ही भगवान गणेश की स्थापना कर चंदन, अक्षत, धूप दीप, फल फूल आदि से षोडशोपचार पूजन किया जाता है और पार्वती जी को सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है। रात में भजन, कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार आरती की जाती है और शिव पार्वती विवाह की कथा सुनी जाती है। इस दिन जहां विवाहित महिलाएं भगवान शिव से प्रार्थना करती हैं कि मेरे पति दीर्घायु हों और मेरा सुगाह अटल हो वहीं कुंवारी कन्याएं भगवान शिव से विनम्र प्रार्थनी करती हुई वर मांगती हैं कि उनका होने वाला पति सुंदर और सुयोग्य हो। आरती के बाद भगवान को मेवा तथा मिष्ठान्न का भोग लगाया जाता है। इसके बाद अगले दिन सुहाग के सामान में से कुछ चीजें ब्राह्मण की पत्नी को दान दे दी जाती हैं और बाकी वस्तुएं व्रती स्त्रियां खुद रखती हैं। इस प्रकार चतुर्थी को स्नान के बाद पूजा कर सूर्योदय के बाद वे पारण कर व्रत तोड़ती हैं।
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