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मानव सभ्यता पर जलवायु परिवर्तन का हुआ गहरा असर- प्रो. ध्रुवसेन

•बाढ़ नियंत्रण के अध्ययन में रिमोट सेंसिंग तकनीक की महती भूमिका- डॉ. मेधा झा
- पूर्वांचल विश्वविद्यालय में चल रही कार्यशाला में भू वैज्ञानिकों का हुआ व्याख्यान
- प्रो. बीएन सिंह और प्रो. प्रफुल्ल ने प्रतिभागियों से की चर्चा
जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय स्थित रज्जू भैया संस्थान के अर्थ एंड प्लेनेटरी साइंसेज विभाग में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत सरकार द्वारा प्रायोजित कार्यशाला  में सोमवार को लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ध्रुवसेन सिंह ने जलवायु परिवर्तन एवं प्राकृतिक आपदाओं पर उसके प्रभाव पर विस्तार से चर्चा की।

उन्होंने कहा कि पृथ्वी पर होने वाली प्रत्येक आपदाएं कहीं न कहीं जलवायु परिवर्तन पर आधारित है । उन्होंने कहा कि पृथ्वी के इतिहास में मानव सभ्यता के पहले भी जलवायु परिवर्तन होते रहे हैं परंतु आज की परिस्थितियों में मानवजनित गतिविधियों की वजह से उसकी दर प्रभावित हो रही है जो बड़ी चिंता का कारण है ।

उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन की अपेक्षा पर्यावरण प्रदूषण में मानवजनित गतिविधियों का अधिक योगदान है। उन्होंने कहा कि प्रकृति अपना बैलेंस खुद बनाती है और अपनी जरूरतों का पूरा कर सकती है लेकिन वर्तमान समय में विकास की होड़ में प्रकृति पर बहुत बुरा असर हुआ है। प्रो. ध्रुवसेन ने से आर्कटिक पोल पर भारत के ग्लेशियरों के अध्ययन के लिए स्थगित भारत के स्टेशन हिमाद्रि की स्थापना एवं अन्य वैज्ञानिक आयामों पर विस्तार से चर्चा की।

 द्वितीय सत्र में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बी. पी. सिंह ने विंध्य पहाड़ियों में पूरा-भूकंपीय तरंगों के परिणामस्वरूप बनने वाली विभिन्न संरचनाओं के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि सोनभद्र, मिर्जापुर चित्रकूट जिले की विंध्य पहाड़ियों में तमाम ऐसी संरचनाएं मिलती हैं जो ये सुनिश्चित करती हैं कि पूर्व में यह परिक्षेत्र भूकंप का बड़ा केंद्र  था।
इसी क्रम में केन्द्रीय दक्षिण बिहार विश्वविद्यालय गया से आये प्रोफेसर प्रफुल्ल कुमार सिंह ने भूस्खलन एवं उसके अध्ययन में रिमोट सेंसिंग के उपयोग पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में पहाड़ी इलाकों में सड़कों के बनने से पहले रिमोट सेंसिंग तकनीकी के माध्यम से उनकी क्षमताओं एवं भविष्य में होने वाले नुकसान का पता आसानी से लगाया जा सकता है। उन्होंने उत्तराखंड राज्य के चकराता - कालसी रोड कॉरिडोर निर्माण एवं विभिन्न भूस्खलन के तथ्यों पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि किसी भी प्राकृतिक आपदा में हुए नुकसान का तात्कालिक रूप से आकलन करना एवं राहत पहुंचाना सबसे बड़ी चुनौती होती है । पहाड़ी इलाकों में प्रतिदिन कहीं न कहीं भूस्खलन होता रहता है जिससे मानीटर करने के लिए रिमोट सेंसिंग सबसे सुगम तकनीक है।

आई आई टी बीएचयू की विशेषज्ञ डा. मेधा झा ने रिमोट सेंसिंग तकनीक के माध्यम से नदियों पर होने वाले शोध पर अपने विचार व्यक्त किये । उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में जल संरक्षण एवं बाढ़ नियंत्रण के अध्ययन में भी रिमोट सेंसिंग तकनीकी की महती भूमिका है। इस अवसर पर रज्जू भइया संस्थान के निदेशक प्रोफेसर प्रमोद यादव एवं प्रोफेसर देवराज सिंह ने बाह्य विशेषज्ञों का अंगवस्त्रम तथा स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। तकनीकी सत्रों का संचालन कार्यशाला के संयोजक डा. श्याम कन्हैया ने किया। इस अवसर पर अर्थ एंड प्लेनेटरी साइंसेज के विभागाध्यक्ष डॉ नीरज अवस्थी, डा. शशिकांत यादव, डा. सौरभ सिंह, डा. श्रवण कुमार एवं सभी प्रतिभागियों सहित विभाग के विद्यार्थियों की उपस्थिति रही।


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