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गठरियों में बांधी लाशें, चार एबुलेंस लेकर पहुंची अस्पताल, क्षत-विक्षत शवों का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर भी कांपे


गाजीपुर। वाराणसी-गाजीपुर हाईवे पर नंदगंज थानाक्षेत्र के रेवसा गांव के पास सड़क हादसे में मृत श्रद्धालुओं के परिजन रात में ही छह गाड़ियों से यहां पहुंच गए। पोस्टमार्टम के बाद रात 12:25 बजे चार एबुलेंस से परिजन क्षत-विक्षत शवों को लेकर गोरखपुर रवाना हुए। पिता-पुत्री के शवों को दो गठरियों में बांधा गया। करीब 150 किमी का सफर तय कर रात तकरीबन 3:30 बजे शव वहां पहुंचे। प्रयागराज महाकुंभ से स्नान कर लौटते समय सड़क हादसे में जान गंवाने वाले नौ श्रद्धालुओं का पोस्टमार्टम शुक्रवार की शाम साढ़े सात बजे से शुरू हुआ। तीन डॉक्टरों के पैनल ने रात करीब 12 बजे तक शवों का पोस्टमार्टम किया। इसकी वीडियो रिकॉर्डिंग भी की गई।
शव क्षत-विक्षत होने के कारण पोस्टमार्टम करने में परेशानी हुई। इसके बाद अमर सिंह (45) और उनकी बेटी नित्या (5) के शवों को दो गठरियों में बांधना पड़ा, क्योंकि दोनों की आंतें बाहर आ गई थीं। इनको सिला नहीं जा सकता था। अमर सिंह के छोटे भाई राणा प्रताप सिंह एबुलेंस से दोनों के शव लेकर रवाना हुए। इसी तरह श्यामसुंदर (45) का एक हाथ अलग हो गया था और सिर फट गया था। प्रिंस चौरसिया अपनी मां सुधा चौरसिया (52) के शव को एंबुलेंस से लेकर गए। वहीं, सुरेंद्र गुप्ता (54), पुष्पा (40) और भगवानी देवी के शव लेकर शिवम यादव एंबुलेंस से रवाना हुए।वहीं, सुब्बाबाजार निवासी इसरावती देवी (45) के शव के साथ एबुलेंस से जितेंद्र सिंह गए। ग्राम प्रधान बृजेश सिंह बैजू और शैलेंद सिंह छह अन्य गाड़ियों से परिजनों को लेकर बांसगांव थानाक्षेत्र के हरदी चक गए। एएसपी सिटी ज्ञानेंद्र नाथ सिंह, सीओ सदर सुधाकर पांडेय, पोस्टमार्टम हाउस में डटे रहे। पोस्टमार्टम के बाद रात में करीब डेढ़ बजे सभी घर पहुंचे ही थे कि सुभावती (40) निवासी हरदी चक थाना बांसगांव की भी मौत की खबर मिल गई।
अमर सिंह तीन भाइयों में सबसे बड़े थे। वह पत्नी वंदना सिंह (53) और बड़ी बेटी अंशिका सिंह (14) और नित्या (5) के साथ महाकुंभ स्नान करने गए थे। घर पर दूसरे नंबर की बेटी थी। हादसे में अमर और नित्या की मौत हो गई। पत्नी और अंशिका गंभीर रूप से घायल हो गई। अमर के पिता शंभू सिंह, चाचा ऋषि कुमार भी पोस्टमार्टम हाउस पर गुमशुम रहे। हरदीचक गांव में एक संग सात शव पहुंचा तो पूरा गांव उमड़ पड़ा। आस-पास के गांव से भी भीड़ हरदीचक पहुंच गई थी। हरदीचक के सात घरों से रोने चीखने की चीखें दूर तक सुनाई दे रही थी। शोक में गांव में किसी के घर चूल्हा नहीं जला।


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