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38 साल की राजनीति के सबसे बुरे दौर में पहुंची बसपा

लखनऊ : बसपा के दिन ढल गए, इन शब्दों पर मंथन करने और पिछले कुछ सालों के चुनावी परिणामों का अध्ययन करने से यह साफ पता चल रहा है कि गठन से 38 साल की राजनीति में बसपा अपने सबसे बुरे दौर में पहुंच गई है। बसपा सुप्रीमो मायावती जिस वोट बैंक के दम पर अपनी शर्तों पर राजनीति करती रहीं, वह भी अब खिसकता नजर आ रहा है।
कुछ जानकार तो यह भी कर रहे हैं कि बसपा का दलित वोट बैंक भाजपा में अपने को सुरक्षित पाते हुए उनके साथ जाता नजर आ रहा है। बुरी स्थिति में भी 22 फीसदी वोट पाने वाली बसपा 2022 के चुनाव में मात्र 12.08 प्रतिशत ही वोट पा सकी।
ऐसे अंदाजा लगाएं कैसे खिसका वोट
हस्तिनापुर सीट पर बसपा पिछले चुनाव में नंबर दो पर थी और उसे 28.76 फीसदी वोट मिला था। इस बार उसका वोट बैंक मात्र 6.21 प्रतिशत ही रह गया। खुर्जा में उसे 23.46 मिला था जो 17.23, हाथरस में 26.62 से 23.31 और 28.69 से 19.35 फीसदी ही रह गया। इन सीटों पर बसपा का वोट बैंक भाजपा को शिफ्ट होता नजर आ रहा है।
दरक रहा दलित वोट बैंक-
यूपी में बढ़ती जातिगत राजनीति को पहचान कर कांशीराम ने 14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी का गठन कर इसके साथ दलितों और पिछड़ों को जोड़ने का काम किया। लेकिन इन 15 सालों में उसका ग्राफ ऐसा गिरा कि वोटिंग प्रतिशत 12.07 प्रतिशत ही रह गया।


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