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नई शिक्षा नीति पर भारी पड़ता चयनबोर्ड


अम्बेडकर नगर प्रथम वेतन आयोग के बाबत गठित रिजवी समिति द्वारा  उत्तर प्रदेश के माध्यमिक शिक्षकों को स्तरहीन कहकर केंद्रीय वेतनमान देने से स्प्ष्ट इनकार के फलस्वरूप जानेमाने शिक्षाशास्त्री व शिक्षक विधायक स्व ओमप्रकाश शर्मा के विधानपरिषद में दिए गए ऐतिहासिक तर्कपूर्ण भाषण के फलस्वरूप 1981 में उत्तर प्रदेश के सहायताप्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों व प्रधानाचार्यों की भर्ती करने हेतु गठित उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयनबोर्ड,प्रयागराज राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2021 पर न केवल भारी पड़ता दिख रहा है अपितु सारे किये धरे का पलीता भी लगा रहा है।जिससे माध्यमिक शिक्षा एकबार फिर मझधार में फँसता नजर आ रहा है,जो कि चिंतनीय प्रश्न है। यह दुर्भाग्य ही है कि गुणवत्तापूर्ण चयन के नामपर गठित चयनबोर्ड स्वयम की गुणवत्ता को लेकर सदैव विवादों में रहा है।पैसे ऐंठकर साक्षात्कार आयोजित करना,दशकों तक विज्ञापित पदों पर चयन न करना तथा आयेदिन पैनलों में हेरफेर करना चयनबोर्ड कि ऐसी करतूतें हैं जिनके चलते  आज प्रदेश में 70 प्रतिशत से अधिक विद्यालय प्रधानाचार्य विहीन तथा शिक्षकों के हजारों पद रिक्त हैं। निकट भविष्य में लागू होने को तैयार राष्ट्रीय शिक्षा नीति को किसके बलबूते असली जामा पहनाया जाएगा,यह यक्ष प्रश्न अनुत्तरित है।।गौरतलब है कि जनवरी 2011 के 975 प्रधानाचार्यों की भर्ती का विज्ञापन ग्यारह वर्षों पश्चात भी आजतक पूरी तरह से निर्णीत नहीं किया गया है।इतना ही नहीं बार बार हुए बदलावों और परिणाम आने में एक दशक से अधिक के विलंब के कारण हजारों अभ्यर्थी परिणाम की प्रत्याशा में रिटायर भी हो गए।जिससे जहाँ विद्यालय एकओर नियमित प्रधानाचार्य को तरसते रहे तो वहीं तदर्थ या कार्यवाहक प्रधानाचार्यों के दायित्व वहन के कारण नियमित कक्षाएं शिक्षक विहीन होती रहीं। प्रतिभाहनन का जो दौर पिछले दो दशकों से भी अधिक समय से उत्तर प्रदेश में चल रहा है,उसके लिए सिर्फ और सिर्फ चयनबोर्ड और सत्ता में बैठे सियासतदां ही जिम्मेदार हैं।
  नई शिक्षानीति 2021 को पलीता लगाते चयनबोर्ड की कारस्तानियों की यूँ तो बहुत लंबी फेहरिस्त है किंतु प्रदेश के 70 प्रतिशत से अधिक विद्यालयों के प्रधानाचार्य विहीन होने के बावजूद भी चयनबोर्ड द्वारा हाथ पर हाथ रखकर कुम्भकर्णी नींद भरना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता है।सत्य तो यह है कि बीते एक दशक में प्रधानाचार्यों की न कोई विज्ञप्ति आयी है और न ही वर्ष 2013 में विज्ञापित 599 प्रधानाचार्यों की भर्ती अबतक की ही जा सकी है।अलबत्ता हाइकोर्ट की फटकार खा कर यदाकदा जागने वाले चयनबोर्ड जे नए फरमानों से प्रधानाचार्य 2013 की भर्ती के परिणाम साक्षात्कार होने के बावजूद भी उच्च न्यायालय की दहलीज पर तारीख दर तारीख सुनवाइयों के दौर में हैं।जिनसे इतना तो कहा ही जा सकता है कि अभी निकट भविष्य में भी विद्यालयों को प्रधनाचार्यों को मिलने में भारी अंदेशा है।  प्रधानाचार्य की स्थिति सेना की टुकड़ियों के कप्तान जैसी होती है विद्यालयों में प्रधानाचार्य न होने से प्रशासकीय व शैक्षिक उन्नयन के कार्यक्रमों की न तो कारगर रूपरेखा बन पाती है और न ही पूर्व में बनी योजनाओं पर अमल ही सम्भव हो पाता है।दुर्भाग्य से आज उत्तर प्रदेश के 3000 से अधिक माध्यमिक विद्यालयों में नियमित प्रधानाचार्य न होने से यही अनिर्णय और विवाद की स्थितियां दिनोंदिन शैक्षिक परिवेश को नकारात्मक प्रभावित करती हुई व्यवस्थाओं पर भारी पड़ रही हैं। यदि नई शिक्षानीति 2021 के परिप्रेक्ष्य में किया जाय तो उत्तर प्रदेश के माध्यमिक विद्यालय संसाधनों की दृष्टि से किसी भी पैमाने पर खरे नहीं उतरते।सहायताप्राप्त विद्यालयों में बढ़ती छात्र संख्या के मुताबिक अतिरिक्त पद सृजन की तो बात ही और जबकि स्वीकृत पदों के सापेक्ष ही नियुक्तियां नहीं हैं,प्रधनाचार्यों के पद कार्यवाहकों के हवाले है,विद्यालयों की प्रयोगशालाएं,शौचालय, भवन व टीएलएम आदि जर्जर अवस्थाओं में हैं तथा इसके विपरीत बिल्डिंग और वाहनों की बात अगर छोड़ दी जाए तो 99 प्रतिशत वित्तविहीन विद्यालयों में प्रयोगशालाओं की अबतक स्थापना ही नहीं हो सकी है। मानक के विपरीत योग्यताधारी और बाबुओं द्वारा भी शिक्षण किया जाना आमबात है।अलबत्ता प्राइवेट विद्यालयों की चमक दमक अभिभावकों की जेबों पर डाका अवश्य डालती है।जिसके चलते नई शिक्षानीति के प्रभावी क्रियान्वयन को लेकर अभी से अंदेशा है।नई शिक्षानीति को लेकर हालांकि अभिभावकों से लेकर विद्यार्थियों तक सभी में नाना प्रकार की जिज्ञासाएं हैं किंतु आयेदिन आनन फानन में सोशल मीडिया के जरिये शासनादेश निर्गत करते हुए अनुपालन का दावा करने वाले माध्यमिक शिक्षा विभाग के लिए चलते हवा में पढ़ाई करवाना कोई खेल नहीं है।विभाग के अधिकारी भी दबी जुबान स्वीकार करते हैं कि हाई टेक व्यवस्था के पहले विद्यालयों में भौतिक संसाधनों का होना नितांत आवश्यक है जबकि चयनबोर्ड इसके बावजूद गलतियों से कोई सबक लेता हुआ नहीं दिख रहा है। सारसंक्षेप में कहा जा सकता है कि प्रिंसिपल विहीन विद्यालयों में नीतियों के क्रियान्वयन का जिम्मेदार और जबाबदेह कौन होगा,यह तो अनुत्तरित प्रश्न है किंतु विद्यार्थियों के होने वाले नुकसान के लिए चयनबोर्ड ही इसके जिम्मेदार होंगें ।उक्त बातें  माध्यमिक संवर्ग  राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ अयोधया मण्डल के संयोजक उदयराज मिश्रा ने कही।


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